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Friday 27 July 2012

रियल हीरोज़


कारगिल युद्ध में शहीद हुए हमारे वीर जवान  

पिछले सप्ताह सभी अखबारों और टीवी चैनलों पर एक ही खबर छाई थी और सभी लोग उस खबर को देखने, सुनने और पढ़ने में व्यस्त थे| यह बॉलीवुड सुपरस्टार राजेश खन्ना की मृत्यु की खबर थी, जिससे पूरे देश में एक शोक की लहर दौड़ गई| सभी अपने अंदाज में राजेश खन्ना साहब को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे| सोशल नेटवर्किंग साइट्स ट्वीटर और फेसबुक पर तो लोग अपनों की मृत्यु से ज्यादा दुखी और ग़मज़दा दिखे|
रेडियो चैनल भी पूरी तन्मयता के साथ राजेश साहब से जुड़े हर छूए-अनछुए पहलूओं को देश की आम जनता के बीच बिना किसी अवरोध के प्रसारित करने में जुटा था| पूरे दिन टीवी और रेडियो में उनकी ही फिल्मों के गीत बजते रहे और दूसरे दिन हर टीवी चैनल ने बिना किसी कॉमर्शियल विज्ञापन प्रसारण के, उनकी शवयात्रा का सजीव प्रसारण किया| यहाँ तक अंतिम संस्कार के दो दिन बाद तक राजेश साहब टीवी, रेडियो और अखबारों के पन्नों पर छाए रहे| उन्हें ऐसी प्रसिद्धि और ख्याति मिलनी भी चाहिए क्योंकि राजेश खन्ना ही बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार थे
                                      राजेश साहब की मृत्यु के एक हफ़्ते बाद यानी २६ जुलाई को जब मैनें अखबार उठाया तो वही रोज़ की घटनाओं से पूरा अखबार पटा पड़ा था; बलात्कार, चोरी, लूट-पाट और हत्याओं जैसी घटनाओं से रंगे थे पन्ने! और कुछ पन्ने देश के भावी राष्टपति प्रणव मुखर्जी के नाम थे| टीवी खोल कर देखी तो समाचार वक्ता भी एक ही सुर-लय-ताल में उन्हीं घटनाओं को सिलसिलेवार तरीके से सुनाने में व्यस्त नज़र आया| लेकिन मुझे इन घटनाओं को सुनने और पढ़ने में कोई रुचि या दिलचस्पी नहीं थी|

मैं तो एक विशेष खबर ढूंढ रही थी, वो खबर जो हमारे देश के रियल हीरोज़ से जुडी थी, पर अफ़सोस मुझे यह खबर कहीं नहीं मिली; न देश के सर्वोच्च दैनिक समाचार पत्र मैं और न राष्ट्रीय समाचार चैनलों में!
यह खबर थी १९९९ के कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों की स्मृति और सम्मान में मनाए जाने वाले विजय दिवस के बारे में; २६ जुलाई १९९९ को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को कारगिल के मैदान-ए-जंग में क़रारी शिकस्त देकर जीत हासिल की थी|
भारतीय सेना ने इस जीत में अपने ५३५ जवान खो दिये, न जाने कितने लापता हो गए| पर अफ़सोस १३ वर्ष पूर्व हुए कारगिल युद्ध और शहीद हुए जवानों को प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माडिया में से किसी ने कोई स्थान नहीं दिया| हाँ फेसबुक पर विजय दिवस से जुड़े कुछ पोस्ट देखने को ज़रूर मिले|

पर क्या इतना काफ़ी है; उन वीर जवानों के सम्मान के लिए! जो बिना स्वार्थ के अपने प्राण देश और देशवासियों पर न्यौछावर करते है| हँसते-हँसते अपने सीने पर गोली खाते और उन्हें देश के समाचार पत्रों में ४ इंच का एक कॉलम तक नहीं मिलता| हमारे जवान मैदान-ए-जंग में किसी मान-प्रतिष्ठा या राष्ट्रपति 
द्वारा दिए जाने वाले मेडल और प्रशश्ति पत्र के लिए नहीं शहीद होता है पर हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने जवानों के सम्मान को गिरने न दे|

हम रजतपटल पर मरते आनंद को देखकर आंसू बहाते है जबकि हमें बखूबी पता होता है कि उस मृत्यु दृश्य को सजीव बनाने के लिए अभिनेता बार बार रीटेक देता है और वह वास्तविक जीवन में जीवित भी है, लेकिन फिर भी सिनेमाघरों से निकलते वक्त हम ग़मज़दा होते है क्योंकि हमारा प्रिय अभिनेता फ़िल्म में मर गया है|
जबकि सीमा पर लड़ते मरते जवानों के पास रीटेक का वक्त ही नही होता... वह एक ही टेक में दुश्मन को मार गिराता है या उसकी गोली से हमेशा के लिए मर जाता है फिर भी हम उन्हें आसानी से भूल जाते है जबकि वो दोबारा ज़िंदा भी नहीं होते|
हमारी संसद या सीमा पर जो जवान मारे गए है, वो सब हमारी रक्षा करते हुए शहीद हुए है फिर भी हम उनकों बड़ी आसानी से भूला देते है और चलचित्र के अभिनेताओं को याद करते रहते है

हमारी निर्लज्जता की अब तो हद भी पार हो गई है| हम संसद और मुंबई जैसी आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वाले आतंकियों को पिछले १० सालों से जेल में बिठा कर पनीर-बिरयानी खिला रहे है| देश का यह कृत उन शहीदों के बलिदान को व्यर्थ साबित करता है| अफ़जल गुरु की फांसी की सजा विचाराधीन होना, हमारे सैनिकों के बलिदान और सम्मान पर बेहद शर्मनाक मज़ाक हैआतंकी पड़ोसी देश हमारे जवानों के शरीर से आँखें, नाखून और बाल नोंच कर हमें उनका क्षत-विक्षत शव वापस करता है और हम उसी आतंकी पड़ोसी देश की तरफ मित्रता का हाथ बढ़ाने की सोच रहे है, देश और सरकार का यह कदम हमारे देशभक्त वीर जवानों की वीरता को अपमानित करने वाला कदम है

पर ग़लती सरकार या उस पड़ोसी देश की नहीं है| ग़लती हमारी है आम नागरिकों की; जो देश के सच्चे नायकों को अनदेखा कर आभासी नायकों के लिए आँसू बहाती है, वाहवाही करती है| अखबार और न्यूज़ चैनल भी बॉलीवुड अभिनेताओं के इतिहास-भूगोल की पूरी पूरी सही जानकारी आम जनता तक पहुँचाने में एक सक्रीय भूमिका निभाते रहते है पर इन सूचना-प्रसारण प्रमुखों के पास सीमा पर लड़ते जवानों की कोई जानकारी नहीं होती क्योंकि रियल हीरो की जिंदगी में कोई चटपटा मसाला और रोमांच नहीं होता, जिसे देखाकर ये पैसे कमा सके! सभी टीवी चैनल बॉलीवुड हिरोइनों के अंगप्रदर्शन को बड़ी प्रमुखता और चाव से दिखता है पर मैदाने-जंग में शहीद हुए जवान के घर की हालत नहीं दिखाता है| सबसे बड़ा सच तो ये है कि हम स्वयम सच्चाई नहीं देखना चाहते| अपने सैनिकों के बारे में कुछ नहीं पढ़ना चाहते और न कुछ जानना चाहते है क्योंकि उनके जीवन में कोई रोमांच नहीं है, कोई चटपटी मसालेदार कहानी नहीं है|

हम अपने घरों में एसी चला कर बड़े आराम से निर्भीक होकर सोते है, बिना किसी डर के दफ़्तर जाते है क्योंकि हमने अपने देश की सीमाओं पर लाखों वफ़ादार, निष्ठावान और बहादुर पहरेदार खड़े कर रखे है पर कभी सोचा है, सैनिकों और उनको परिवार के प्रति हमारी यह उदासीनता और लापरवाही, सैनिकों में एक दिन रोष का कारण भी बन सकती है! हमारी ऐसी कृतघ्नता देखकर अगर सैनिकों ने लड़ने से मना कर दिया और सीमा छोडकर अपने अपने घरों में वापस चले गए... तो हम कहाँ के रह जाएगें!

इसलिए सिर्फ १५ अगस्त और २६ जनवरी के अलावा भी हमें अपने देश के सैनिकों को सम्मान देना चहिये| उनके निस्वार्थ बलिदान को मान देना हमारा फ़र्ज़ होना चाहिये| हमें उनका और उनके परिवार का आभारी होना चाहिए क्योंकि उनके साहसों और वीरता की बदौलत ही हम ज़िंदा और सुरक्षित है न कि किसी बॉलीवुड हीरो की फ़िल्मी बहादुरी के चलते|

जय जवान, जय हिंद!!!