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Thursday 1 November 2012

मेरा पति मेरा देवता है


कल करवाचौथ पर्व है, जिसको लगभग प्रत्येक हिन्दू महिला बड़ी हर्षोल्लास के साथ मनाती है| निर्जला व्रत करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करती है और करवाचौथ माता से जन्म-जन्मांतर तक पति का साथ मांगती है| करवाचौथ का व्रत मुख्यत: पति-पत्नी के पारस्परिक प्रेम और स्नेह का प्रतीक है| नवविवाहित वधु हो या प्रौढ़ महिला, सब समान रूप से इस पर्व को मनाती हैं| आज करवाचौथ का रूप पारम्परिक पर्व से बहुत बदल गया है| अनेक पर्वों की तरह इस पर्व पर भी हिन्दी फिल्मों का असर बखूबी देखा जा सकता है| बाज़ारों की रौनक तो करवाचौथ के दस दिन पहले से ही बढ़ जाती है और “ब्यूटीपार्लरों” की भीड़ देखते ही बनती है| आज कुछ प्रगतिवादी आधुनिक पति भी अपनी पत्नी के लिए करवाचौथ का व्रत रखने लगे हैं| अपनी पत्नियों के लिए महँगे महँगे उपहार लाते है|


यह सब बातें तो बिल्कुल सीधी और मीठी थी पर करवाचौथ के साथ कुछेक बातें ऐसी भी हैं, जिन्हें अक्सर समाज और परिवार के लोग नकार देते हैं और मन में उठ रहे सवालों के ज़वाब में हमें रीति-रिवाज और परम्परा की दुहाई देकर चुप करा दिया जाता है|

करवाचौथ का व्रत मुख्यतः पति की लम्बी उम्र और सात जन्मों का साथ पाने के लिए किया जाता है पर यह रीति उन पत्नियों के लिए तो सही है जिनके पति गुणवान, परिश्रमी और रक्षक है| परन्तु जिन औरतों के पति स्वयं अपनी पत्नी को मारता-पीटता है, शराबी है और परस्त्रीगामी है तो वो औरतें क्यों करवाचौथ का व्रत रखती हैं? हर रोज़ अपनी पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करना, छोटी छोटी बातों में ताना मारना, सबके सामने नीचा दिखाना, ऐसे पति की लंबी उम्र की कामना करना कहाँ तक सही है? आतंकवादियों, डाकूओं और चोरों की पत्नियों के द्वारा करवाचौथ का व्रत करना कहाँ तक न्यायोचित है? बेटा न होने पर अपनी पत्नी को छोड़ कर दूसरी शादी करने वाले आदमी के लिए दो-दो औरतें करवाचौथ का व्रत करती हैं, क्या उन्हें अगले सातों जन्म ऐसा ही गिरा हुआ पति चाहिए जो बेटा न होने पर उन्हें छोड़ कर दूसरी औरत के साथ घर बसा ले? पति एक पत्नी के जीते जी दूसरी औरत से शादी कर ले पर औरत उसी नालायक पति को पाने के लिए व्रत करती रहे|गरीब औरतें दूसरों के घर बर्तन मांज कर चार पैसे इकट्ठे करती हैं और पति उनसे पैसे छीन कर दारू पी जाता है, ऐसे पति का साथ सात जन्मों तक
माँगना मूर्खता ही है|
और सबसे अजीब बात तो यह लगती है कि जब पति मर जाता है तब करवाचौथ की कोई कीमत नहीं रह जाती है| माना कि करवाचौथ का व्रत  करने से आपके पति की उम्र नहीं बढी पर यह व्रत तो पति का साथ सात जन्मों तक पाने के लिए भी तो है फिर क्यों पति के मरने पर यह व्रत मर जाता है? क्या जब तक पति जिंदा था तब तक ही देवता था या सिर्फ उसको दिखाने के लिए व्रत रखा जा रहा था| 

हमारे समाज में पति नकारा, निकम्मा या चाहें जैसा भी हो उसे देवता का दर्जा प्राप्त है| वह कुछ भी करें पत्नी को उसका अनुसरण करना चाहिए| पति चाहें कितना भी गलत क्यों न हो, उसका विरोध न करके उसके साथ देना चाहिए| यह सब बातें हम औरतों को बचपन से सिखाई जाती हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि "पति परमेश्वर" है यह बात कोई आदमी नहीं औरतें ही बताती हैं, उन औरतों में बहुत सी औरतें स्वयं पति की प्रतारणा से पीड़ित होती हैं| फिर भी पति को परमेश्वर का दर्जा दिए बैठी हैं|

मुझे कोई आपत्ति नहीं है सभी औरतों के द्वारा अपने अपने पति को परमेश्वर मानने में, बशर्ते पति में परमेश्वर वाले सभी गुण मौज़ूद हों| परमेश्वर कभी अन्याय नहीं करता, कभी आग में जलाता नहीं हैं| परमेश्वर रक्षक है, भक्षक नहीं अगर ऐसा गुण किसी औरत के पति में है तो वह शौक से अपने पति को मंदिर में बैठा कर पूजे| 




2 comments:

  1. मणि
    हिंदुस्तान में ऐसे कई व्रत और त्यौहार मनाए जाते है जो सामाजिक व भावनात्मक डर का उदहारण है. अगर तुम तमाम त्योहारों को देखो जैसे की हरितालिका तीज तुम्हे पता चलेगा की इसमें कितनी बाते डरा ने की लिए है की व्रत न करने पे तुम्हारे साथ क्या क्या बुरा हो सकता है . साथ ही साथ महिलाओ की आपसी कम्पटीशन भी इस को प्रमोट करता है. उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे. अगर वो उपने पति से अपने प्यार का क्वांटम का प्रदर्शन मुश्किल हालत में दिन बिता कर कर रही है तो क्या मै मेरे प्यार का क्वांटम कम है, नहीं मै भी उतना ही कठिन वर्त रहूंगी. अगर तुम देखो तो करवा चौथ एक राष्ट्रीय पर्व नहीं है पर बाज़ार और सिनेमा ने इसे राष्ट्रीय पर्व बना ही दिया है.
    मेरे विचार से इन सभी वृतो को शुरू करना उन पुरुषों की मानसिकता रही होगी जो अपनी पूजा करवाना पसंद करते रहे होंगे और हमारी गुलामीवादी मानसिकता ने इसे इतना व्यापक करदिया की आज यही गुलामी गर्व की बात हो गई है.

    कुछ प्रश्नों के उत्तरों को नहीं ढूढना चाहिए कुछ परिवर्तन का प्रयास करना चाहिए

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  2. आपने बहुत सार्थक प्रश्न उठाया है इस विषय पर सोचना अब जरूरी हो गया है।

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