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Tuesday 10 December 2013

एक नया सिंदबाद !!!

विज्ञान के अनुसार आदतें धीरे धीरे वंशानुगत हो जाती हैं... हम गुलाम मानसिकता से ग्रस्त है इसलिए "टीम केजरीवाल" की जीत को पचा नहीं पा रहे हैं| बीजेपी ज़रूर ज़्यादा सीटें लेकर प्रथम पार्टी बन कर उभरी है लेकिन सही मायनों में चली तो सिर्फ "झाड़ू" है... लेकिन हम गंदगी में रहने के इतने आदी हो चुके हैं कि सफाई रास ही नहीं आ रही है|

हम बरसों से कांग्रेस और भाजपा के बीच डोलते रहे हैं... जिसका परिणाम हमने स्वयं भुगता है| दोनों पार्टियाँ मनमानी और भ्रष्टाचार की पराकाष्टता को पार कर गईं है| हम दोनों पार्टियों को गाली देते हैं लेकिन विकल्प न होने की दशा में उन्हीं भ्रष्टतम लोगों में निम्न भ्रष्ट को वरीयता देकर सत्ता में लाने के लिए बाध्य थे... 

और अपनी इन दुर्दशाओं के निवारण हेतु हम किसी सिंदबाद की राह देख रहे थे कि कोई तो आये तो हमें इन दोनों से मुक्त करे... लेकिन जब "आप" पार्टी भ्रष्टाचार में फंसी नैया खेने के लिए आई है तो हम उसे शक की निगाह से देख रहे हैं| 


भाई एक मौका तो दो किसी को कुछ करने का... कोई भी अपनी माँ के पेट से कुछ सीखकर नहीं आता और न किसी के खून में सत्ता चलाने का कीड़ा होता है| जहाँ हम कांग्रेस-बीजेपी, बीजेपी-कांग्रेस को मौका देकर कुछ बदलाव की उम्मीदें करते थे और मिलता कुछ नहीं था फिर भी हम कभी नहीं थके... तो ऐसे में जब हमारे सामने कोई बदलाव लेकर आया है तो हम उसे एक मौका क्यों नहीं देना चाहते है... अरे "टीम केजरीवाल"  नाकाम रही तो हमारे पास तो कांग्रेस और बीजेपी हैं ही.... हमारा खून  चूसने और अरमान पीसने के लिए !!!

दिल्ली में जो त्रिशंकु की स्थिति बन गयी है ऐसे में दोबारा चुनाव ही एक मात्र विकल्प बचता है...परन्तु  कुछ लोग दोबारा चुनाव होने से डर रहें हैं.... कुछ नाराज़ है... उन्हें  लग रहा है कि जनता का पैसा फिर बर्बाद होगा... 
अरे यार कांग्रेस-बीजेपी ने जितने घोटाले किये हैं उससे तो कम ही पैसे लगेगें... होने दो चुनाव और चुनाव ही तो लोकतंत्र का आधार है... निहित है.... मांग है| 

जिसमे दम होगा वो निकल कर आएगा सामने... चाहें वो बीजेपी हो या फिर "टीम केजरीवाल" और बीजेपी को डर होगा कि जिस तरह "आप" ने जनता के  बीच घुसपैठ बनाई है ऐसे में क्या उन्हें दोबारा चुनाव में अपनी ३२ सीटें मिल पाएगीं.....पूर्ण बहुमत तो दूर की कौड़ी है ज़नाब !!!

हम त्रस्त हो चुके हैं अभी तक के सत्ताधारियों और विपक्ष से.... बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, अराजकता और असुरक्षा से... आज से पहले भी तो बीजेपी ही दिल्ली में  विपक्ष में रही है... तब क्यों सत्तारूढ़ शासक को निरंकुश होने दिया ??? क्यों स्वयं हिजड़ों जैसा बर्ताव किया जनता के सामने.... किसने रोका था उसे सशक्त विपक्ष बनने से ??? "दिल्ली रेप काण्ड" में जनता को सरकार से कम विपक्ष से ज्यादा उम्मीदें थी पर विपक्ष तो सामने ही नहीं आ रहा था.... जैसे उसने रेप किया था... सरकार को घेरने के लिए जनता सड़क पर थी लेकिन विपक्ष चूड़ी-घाघरा पहने नचनिया बन गयी थी...  फिर भी देश का एक खास वर्ग  देश की आबोहवा बदलना नहीं चाहते क्योंकि  उन्होंने न्यूटन द्वारा प्रतिपादित "जड़त्व के नियम" का रट्टा मार कर हाईस्कूल में अच्छे नम्बर लाये थे पर प्रबुद्ध जीवियों को शायद याद नहीं न्यूटन ने "जडत्व के नियम" के बाद "क्रिया-प्रतिक्रिया के नियम" का प्रतिपादन किया था...

यह हमारी गुलाम मानसिकता का प्रमाण है कि हम बदलाव नहीं चाहते| विकल्प के रूप में चाहें कितना ही सुनहरा अवसर मिलें, हम उसे भुनाना नहीं चाहते क्योकि हमारा रोम रोम, हमारा मन-मस्तिष्क सब सोच का गुलाम हो चुका है| हम पीढ़ियों से किसी ख़ास वर्ग द्वारा की शासित किये गये हैं और आज भी हम उन्हीं निकम्मों, नाकारों को देश में शासक के रूप में देखना चाहते हैं... 

परन्तु समय करवट ले चुका है और एक नये सिंदबाद का उद्भव हो चुका है....