
अक्सर पुरुषों की शिकायत होती है कि औरतें ही उन्हें उकसाती है... कभी अश्लील और उत्तेजक कपड़ो से, कभी मुखर प्रतिक्रिया से...
पर जब बलात्कार आठ नौ साल की लड़की के साथ होता है तो क्या वो लड़की भी अश्लील इशारे करती है एक अधेड़ आदमी को! जो नपुंशक आदमी उसका बलात्कार करते है|
वेश्यावृत्ति से घिरी औरतें समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखी जाती क्योंकि वो औरतें एक से ज़्यादा पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बनाती है जबकि आदमी भूल जाता है कि उन औरतों को वैश्या बनाने में वो ही शतप्रतिशत भागीदार है|
पुरुष, एक वैश्या से उत्पन्न अपनी ही बेटी से शारीरिक संबंध बनाता है और औरत को उसकी हद बताता है!
जिस औरत को सुबह दिन के उजाले में वैश्या की गाली देते, उसी औरत के साथ रात में बिस्तर पर मर्द होने का दम्भ भरते!
एक औरत कभी अपनी मनमर्ज़ी से वैश्या नहीं बनती... वो पुरूष ही है जो घर में बीवी के होते बाहर मुहं काला करता है और औरत को वेश्यावृत्ति करने पर मजबूर करता है|
अभी कुछ महान आदमी बोलोगें... हम जबरदस्ती तो नहीं करते है, किसी के साथ! पर अगर कोई औरत न माने तो उसपर तेज़ाब डाल देते है, अगवा करवा देते है और कहते है साली मान नहीं रही थी |
अगर आदमी अपनी बीवी से प्यार करता है तो बाहर मुहं मारने क्यों जाता है? सच तो ये है कि आदमी वासना में लिप्त है उसे अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए १० औरतें चाहिए |
हमेशा औरतों से ही सुचिता की उम्मीद क्यों की जाती है ?
एक पुरुष दुनियाँ की हर औरत को भोगना चाहता है, उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहता है परन्तु शादी उस लड़की से करना चाहता है जिसका कभी किसी के साथ "चक्कर" न चला हो | किसी और पुरुष ने उसका शीलहरण न किया हो |
अजीब सी दोहरी मानसिकता है पुरुष की... दारुखाने में बैठकर दोनों हाथों में लड्डू चाहिए वो भी मंदिर के!!!