भारत प्राचीन काल से
ऋषि-मुनियों का देश रहा है| भारत की धरती पर अनेक महात्माओं ने जन्म लिया और अपना सम्पूर्ण
जीवन, जीव कल्याण में लगा दिया|
प्राचीन ऋषि मुनि ईश्वर की खोज़ में
दर दर भटकते रहे परन्तु उन्हें साक्षात ईश्वर के दर्शन कभी नहीं हुए|
आज आधुनिक काल में भी
भारत में बाबाओं और साधुओं की कमी नहीं हुई है| शायद अगर गिनती करने
बैठेगें तो प्राचीन काल से ज़्यादा साधु और बाबा मिल जाएगें क्योंकि आज
कुकुरमुत्तों के जैसे हर गली-नुक्कड़ पर ढोंगी बाबाओं की दुकानें खुल गई हैं जो आम
जनता को ईश्वर तक ले जाने में बड़ी सहायक सिद्ध हो रही हैं और जनता भी ईश्वर
को पाने के लिए इन बाबाओं और साधुओं के पीछे पागलों की तरह भाग रही है| कई लोगों ने तो ईश्वर को छोड़ कर इन बाबाओं को पूजना शुरू कर
दिया है, उनका मानना है कि जो कार्य ईश्वर करने में असमर्थ है, वह सारे काम इन
बाबाओं की एक कृपादृष्टि से पल भर में चुटकी बजाते हो जाते हैं|
इन तथाकथित बाबाओं और
साधुओं का ईश्वर से "डाइरेक्ट कनेक्शन" होता है तभी तो पाँच मिनट के
ध्यान से ईश्वर अपना सारा काम-धाम छोड़ कर इनके पास दौड़ा चला आता है और इनके भक्तों
की अपनी सामर्थ्य अनुसार समस्याएं दूर करने में जुट जाता है| कभी कभी तो मुझे लगता
है कि ईश्वर, इन पहुंचे हुए बाबाओं और साधुओं के यहाँ बंधुआ मजदूर है, तभी तो इनकी एक आवाज
पर उल्टे पाँव भागता चला आता है|
प्राचीन काल के बड़े
बड़े ऋषि-मुनियों ने दर दर भटक कर जंगलों में सिर्फ घास ही छीली है शायद इसीलिये
ईश्वर उनसे कभी प्रसन्न नहीं हुआ और न कभी उनको अपने दर्शन दिए| उन्होंने ईश्वर को
पाने के लिए अपनी पत्नी और गृहस्थी छोड़ी पर उन्हें ईश्वर तो दूर, ईश्वर का नाखून तक न
मिला और अंत में बेचारे अपनी असफ़ल यात्राओं और खोज़ का सारा चिट्ठा हमें दर्शनशास्त्र
के रूप में टिका कर चले गए|
पर आज के बाबाओं और
साधुओं की ईश्वर पर पकड़ बहुत अच्छी और मजबूत है,
तभी तो आज के बाबाओं को ईश्वर की
खोज़ में भटकना नहीं पड़ता है| वो लोग आराम से अपने एसी कमरों में बैठे रहते हैं और पाँच-छै:
कमसिन बालिकाएं उनकी सेवा में हर पल तत्पर रहती हैं और बाबा इन कन्याओं की मदद से ईश्वर की खोज़ करते रहते हैं|
यह १८-२० साल की
युवतियाँ इन वातानुकूलित आश्रमों में मानसिक शान्ति की खोज़ में आती हैं| कुछ
ईश्वर की प्राप्ति के लिए तो कुछ स्वयं को जानने के लिए इन बाबाओं के सानिध्य में रहना
चाहती है| यह सभी लडकियां अपने उद्देश्य में कितना सफल होती हैं यह तो वही
जान सकती हैं पर बाबा के तन की शान्ति की खोज़ में यह लड़कियां अपना पूर्ण सहयोग
देती हैं| बाबा और उनके शिष्य इन चेलियों के साथ रोज़ तन की शान्ति यात्रा
पर निकल जाते हैं|
और जब कुछ समय पश्चात
बाबा जी को तन की शान्ति के लिए दूसरी लड़की मिल जाती हैं तो यही लडकियां बाद में रोना रोती हैं "हाय हाय मेरा बलात्कार हो
गया, पिछले दो साल से स्वामी जी और उनके शिष्य मेरा
यौन शोषण कर रहे थे और न जाने कितनी बार मेरा गर्भपात कराया गया है"
कभी कभी तो मुझे लगता है कि लड़कियां खुद ही कमज़र्फ़ होती हैं, जो ढोंगी पाखंडियों से स्वामी जी स्वामी जी करते जा चिपकती है| इन लड़कियों से घर में बैठ कर ईश्वर की पूजा नही की जाती है पर मुहं उठा के चल देती है स्वामी जी के सानिध्य में, शांति की खोज में...
अभी दूध के दांत टूटे भी नहीं होगें पर पता नही इन १८-२० साल की लडकियों को कौन सी और कैसी शांति की खोज रहती हैं|
अरे जब चार गैर मर्दों के बीच अकेली रहोगी... तो बलात्कार नहीं होगा तो क्या होगा?
वो कहावत तो सुनी ही होगी "जब आग फूस साथ रखोगें तो जलेगें ही"
अपने हिंदू धर्म में कहीं नहीं लिखा है कि औरतों और लड़कियों को
किसी पुरूष को गुरू या स्वामी बनाने की आवश्यकता है| उनका गुरू, स्वामी, ईश्वर सब कुछ उनका
पति ही होता है पर कौन समझाएं इन करम-जलियों को!!!
सबसे बड़ी
रोचक बात तो यह है कि आज के इस तकनीकी युग में कैसे कोई इन आश्रमों में बैठ कर
दर्शनशास्त्र पढ़ सकता है? १८-२० साल की उम्र में लोग सबसे ज़्यादा संसारिक
होते हैं, इसी उम्र में लोग प्रेम-प्रसंगो में लिप्त होते है| अपना और परिवार का नाम रोशन करने की चाह होती है| इस उम्र में तो मानसिक शान्ति की किसी को कोई ज़रूरत ही नहीं होती है, तो फिर कैसे ये
लडकियां इन आश्रमों में पहुँच जाती हैं?
मैं यह
नहीं कहती कि किसी पराये मर्द से बात मत करो या किसी से हँसों बोलो नहीं... पर
चिपकने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि अपने समाज में गलती चाहें स्त्री की हो या पुरुष
की, उसे हमेशा स्त्रियों के सिर ही मढ़ा जाता है| स्त्रियों की शारीरिक बनावट ही ऐसी है कि लाख चाहने के बावज़ूद भी कोई
गलती छुप नहीं सकती|
इन ढोंगी
पाखंडियों की सच्चाई से सभी वाकिफ़ हैं फिर भी इनकी दुकानें चलती हैं क्योंकि हम सब
देख कर अंधे बने रहना चाहते हैं| किसी बाबा के आश्रम से नन्हें-मुन्हें बच्चों के शव निकलते हैं तो
कोई देश-विदेश में बड़े पैमाने पर सेक्स रैकेट चला रहा है| कोई नाबालिग लड़कियों के रेप केस में १०-१२ साल की सज़ा काट चुका हैं
तो कोई धर्म के नाम पर पैसा बटोर कर होटल और बार चला रहा है और तो और कुछ मंदिर की
गद्दी पाने के लिए अपने ही गुरु/मित्र की हत्या करवा देते हैं| फिर भी हम कुछ नहीं कहते क्योंकि हमारे लिए धर्म से बढ़ कर कुछ है| हम सबको जीते जी और मरने के बाद स्वर्ग ही चाहिए, सिर्फ इसका फ़ायदा ये पाखंडी उठाते हैं|
इन
तथाकथित बाबाओं का अगर भूतकाल देखेगें तो कोई दर्जी था तो कोई सड़क के किनारे समोसे
तालता था, किसी के ऊपर बैंकों का ब्याज़ बाकी था तो कोई अपने
दोस्त की हत्या की सज़ा से बचने के लिए बाबा बन बैठा है| जिसको हिन्दी ठीक से बोलनी नहीं आती वो एक ही रात में अचानक से
भारतीय दर्शनशास्त्र का महान विद्वान बन जाता है| १८-२०
साल की लड़कियों के साथ रास रचाने वाले ५० साल के पहुँचे हुए बाबा आम जनता से कहते
हैं भोग-विलास छोड़ दो| लक्ष्मी का मोह छोड़ दो, पैसा तो हाथ का मैल है, आता है जाता है पर जब कोई
आयोजक इन्हें इनकी फीस से १ रूपये कम देता है तो वहाँ कथा कहने नहीं जाते हैं| खुद तो चवन्नी चवन्नी के लिए मरे जाते है और जनता तो मोह त्याग करने
को कहते हैं|
ये
पाखंडी और कुछ नहीं हैं सिर्फ हमारे धर्मान्ध होने का फायदा उठाते हैं और हम इतने
मुर्ख हैं कि सब जानते हुए भी इनका ही साथ देते हैं|
मीत्रो आप अगर मुसीबत मै है तो कोइ भी बाबा या कोइ भी भग्वान अपकि मदत नही करेंगे! वो आप हो जो अपकी सहायता कर सकते हो। आप अगर अपनी मदत आप नही करेंगे तो आपकी मदत करने कोइ अवतार नही आयेंगे या कोइ चम्तकार नही होगा।
ReplyDelete“कर्मन्ये वीधिकरस्ते मा फ़लेशु कदाचना” ये भगवद गीता मे लीखा है, ये तो सभी जानते है, अनुवाद है-कर्म करते रहे और फ़ल कि इक्छा ना करे, भावार्थ: है- कर्म करने पे अपका अधिकार है,अपका कर्तव्या है, आप कर्म करे, क्युकी कर्म करोगे तो हि कर्मानुसार फ़ल भी मिलेगा, मगर उस फ़ल कि इक्छा ना करे, वो मेरा (भग्वान्) अधिकार छेत्र मे है और मै समयानुसार ही फ़ल दुंगा!!
किस जगह भग्वद गीता , रामायण या महाभारत मे लीखा है की आप फ़ला फ़ला पुजा -पाठ करो, आपको फ़ल या सफ़लता मिल जायेगी, हमने तो नही पधा अभी तक !
अरे मुर्खो!! जब भग्वान श्री क्रिष्ना को और भग्वान श्री राम को जन्म लेकर , लड़ायी लड़ कर (कर्म करके) कन्स और रावण का वध करना पड़ा! तब जाके सारे विश्व मे उनको सम्मान मिला फ़ल मिला।(बहुत सारे मित्रा सहमत नहि होंगे, उन्से छमा मङ्ता हुँ)। तो आप क्यु पिछे हठ रहे हो, आगे बधो, दुखो से लडो और सफ़ल्ता को छिन लो। जब भग्वान ने कोइ शोर्ट-कट नही अपनाया तो आप क्यु?
http://vishalshresth.wordpress.com/2012/09/13/aaaaaya/