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Tuesday, 22 April 2014

क्यों टांग अड़ाए काज़ी ?

पिछले 45 सालों से अपने वैवाहिक जीवन पर हमेशा चुप रहने वाले नरेंद्र मोदी ने अचानक जशोदाबेन को अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया| नरेंद्र मोदी की इस स्वीकरोक्ति पर राजनीति में बवाल तो मचना तय ही था और पूरे शबाब के साथ बवाल मचा भी| अभी तक अपनी शादी पर चुप रहने वाले नरेंद्र मोदी ने जशोदाबेन का नाम एकाएक सार्वजनिक कर दिया| तीन बार मुख्यमंत्री नामांकन पत्र में मोदी ने एक बार भी अपनी पत्नी का नाम नहीं भरा| कांग्रेसियों द्वारा नपुंसक कहे जाने पर भी मोदी के अपने वैवाहिक जीवन को सार्वजनिक नहीं किया लेकिन प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के नामांकन में मोदी ने जशोदाबेन नाम का पत्नी के स्थान पर भर कर अनेकों विवादों को जन्म दे दिया| 

अनेक नारीवादियों ने मोदी को खूब-खरी खोटी सुनाई| कांग्रेसियों की प्रतिकियाएं देखकर तो ऐसा लग रहा था मानो उनके हाथ बटेर लग गई हो और वो सब मिल कर या तो मोदी की पुन: शादी जशोदाबेन से करवा कर उनकी बरसों से उजड़ी गृहस्थी फिर बसा देगें... या फिर नारी के अपमान में मोदी को फाँसी देगें|
इतना हो-हल्ला होने पर भी मोदी और जशोदाबेन, किसी ने भी एक बार भी सामने आकर अपने वैवाहिक जीवन पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया और शायद इसकी ज़रूरत भी नहीं है| जो तथ्य मोदी-जशोदाबेन प्रकरण में सामने आयें हैं वह सिर्फ़ इलेक्ट्रानिक एवं प्रिंट मीडिया की कृपा मात्र है||

मोदी-जशोदाबेन प्रकरण से एक बात फिर से स्पष्ट तौर पर सामने आई कि लोगों को  अपनी पत्नी ज़्यादा और दूसरों की बीवियों की फ़िक्र होती है| असम के मुख्यमंत्री तरुण गगोई ने मोदी की पत्नी को एक सच्ची सन्यासिन बता कर उनके लिए "भारत रत्न" की मांग कर डाली| वही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय ने मोदी को नारी विरोधी कह कर उनका बहिष्कार करने की बात की तो कपिल सिब्बल ने इसकी चुनाव आयोग से शिकायत कर दी|

मोदी के प्रधानमंत्री बनने और न बनने में मेरी अपनी कोई निज़ी दिलचस्पी नहीं हैं और न मैं मोदी की भक्त हूँ और न समर्थक हूँ फिर भी एक बात उन लोगों से पूछना चाहती हूँ... जो मोदी को जशोदाबेन-प्रकरण में घेर रहें हैं... क्या आप सभी अपने निज़ी जीवन में स्त्री-मामले में पाक़-साफ़ हैं? जितनी फ़िक्र आपको मोदी की पत्नी की हो रही है क्या उसकी आधी भी कभी अपनी बीवी की चिंता की है? क्या पत्नी के सम्मान में कभी खड़े हुए हैं आप?  या पत्नी के अलावा आपका कोई चक्कर नहीं चला है ? 

खैर! मेरी मंशा किसी के निज़ी जीवन को सार्वजनिक पटल पर छीछालेदर करने की बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि प्रत्येक इंसान की अपनी कुछ निज़ी ज़िन्दगी होती है जिसे वो हमेशा अपने आप तक ही सीमित करना चाहता है और हमें प्रत्येक व्यक्ति की निजता का पूरा सम्मान भी करना चाहिए| हम राजनेता हो, अभिनेता हो या आम जनता; हमारी निजता पर सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा अधिकार है कि हम अपने जीवन को किस हद तक सार्वजनिक करना चाहते हैं| किसी के निज़ी मामलों में ज़बरन हस्तक्षेप, उसके मौलिक अधिकारों का हनन है|

मेरा नज़रिया जशोदाबेन मामले में, नारीवादी चिंतकों से थोड़ा-सा अलग है... लोगों को लग रहा है कि मोदी ने अपनी पत्नी के साथ जो किया है वह बहुत ही गलत किया| इसके लिए उन्हें समाज और अपनी पत्नी से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगनी चाहिए और जशोदाबेन को सिर्फ कागज़ों में ही नहीं बल्कि अपने जीवन में भी पत्नी का स्थान देना चाहिए... 
परन्तु यदि आप स्पष्ट एवं दूरगामी दृष्टि से देखें तो आपको भी लगेगा कि जो मोदी ने किया वो एक दम सही था, जिस रिश्ते को जीना नहीं चाहते थे, जिसे वो निभा पाने में स्वयं को असमर्थ समझ रहे थे... उन्होंने उस रिश्ते को उसके शिशुकाल में भी त्याग दिया और अपनी पत्नी को उस बंधन से मुक्त कर दिया और फिर कभी वो उस रिश्ते की तरफ़ रुख नहीं किया| ग़लत तो तब होता जब मोदी जशोदाबेन के साथ रह कर उन्हें पत्नी का दर्जा नहीं देते| उन्हें मारते पीटते और घर के किसी कोने में सामान की तरह रख छोड़ते| लेकिन उन दोनों के बीच ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि दोनों लोग किसी समझौते के तहत ही अलग हुए होगें क्योंकि यदि मोदी परस्पर सहमति के बिना अलग हुए होते तो मोदी के मुख्यमंत्री बनते ही जशोदाबेन और उनका परिवार मोदी पर आक्षेप लगा सकता था या कभी उनसे मिलने आ सकता था| 
लेकिन न तो कभी मोदी ने उनका किसी भी तरह का "सो कॉल्ड फ़ायदा" उठाया और न जशोदाबेन कभी उनसे मिलीं| 

जैसे प्रेम के लिए मात्र हृदय के समर्पण की कल्पना की गयी है... नाम के आडम्बर की नहीं ठीक वैसे अलगाव के लिए भी हृदय का समर्पण चाहिए... न कि किसी कागज़ के टुकड़े पर हस्ताक्षर की !!!


मेरी नाराज़गी उन लोगों से है जो जशोदाबेन को मोदी के पास लौट जाने की सलाह दे रहे हैं और बार बार अपने लेख और कथन में उन्हें श्रीमती मोदी कह कर सम्बोधित कर रहे हैं| जो रिश्ता उन दोनों ने आज से लगभग 45 साल पहले खत्म कर दिया था क्यों वे उस रिश्ते में वापस जाएं ? मोदी देश के भावी प्रधानमंत्री बनने वाले है सिर्फ़ इसलिए ? लेकिन यही मोदी अगर ग़लत रास्ते पर चले जाते तो क्या फिर भी आप जशोदाबेन को पति के पास लौट जाने की सलाह देते ? 
शायद यही सलाह देते क्योंकि आज भी भारत में एक औरत की पहचान मात्र उसके पिता-पति-पुत्र से ही की जाती है?  मोदी द्वारा जशोदाबेन को पत्नी स्वीकार करना मात्र एक क़ानूनी औपचरिकता है, इसका यह मतलब तो कतई नहीं निकलता अब उनकी अपनी निज़ी पहचान खत्म हो गयी| अगर उन्हें मोदी के पास वापस जाना ही था तो वो आज से 10 साल पहले चली जाती जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे|  

हमें मोदी और जशोदाबेन के फ़ैसले का सम्मान करना चाहिए, जिस रिश्ते को वो निभाना नहीं चाहते थे उसको उन दोनों ने जिया भी नहीं| परस्पर प्रेम न होते हुए भी अक्सर लोग शादी निभाने को मज़बूर रहते हैं और जिससे प्रेम करते हैं उसे भूल जाने की कोशिश में लगे रहते हैं... ऐसे जीवन को जीना मात्र एक सज़ा के अलावा कुछ नहीं है|

हम इतना पढ़-लिखकर, खुले विचारों के होकर भी अपने फ़ैसले नहीं ले पाते हैं और अगर कोई फ़ैसला करते भी हैं तो अक्सर मुकर जाते हैं| 
प्रेम में किसी के धोखा देने या अलग हो जाने पर हम टूट जाते हैं... अपने जीवन का उद्देश्य ही खो बैठते है, कभी कभी तो आत्महत्या जैसे क़दम तक उठा कर जीवन ही खत्म कर देते हैं लेकिन जशोदाबेन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया... उन्होंने ख़ुद को जीना सिखाया, अपने पैरों पर खड़ी हुई और पूरे आत्मसम्मान के साथ अपना जीवन जी रही हैं... उन्हें अपने नाम के पीछे की के नाम की ज़रूरत नहीं है| 

नारीवादी होने का मतलब सिर्फ़ हर मोड़ पर पुरुष को ग़लत ठहराना नहीं है... बल्कि औरतों के द्वारा लिए गये सही फ़ैसले का सम्मान करना है|

1 comment:

  1. 1. औरतों द्वारा मर्द को तलाक दिए जाने को ‘खुला’ कहते हैं।

    2. कुरान शरीफ में औरतों को मर्दों की ‘खेतियाँ’ कहा गया है। कुरान शरीफ, शूरे बकर, पारा 2, रूकू 28, आयत 223, पृष्ठ 77, शेरवानी संस्करण, किताबघर, लखनऊ।http://gadyakosh.org/gk/%E0%A4%97%E0%A5%82%E0%A4%81%E0%A4%9C_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97_1_/_%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6

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