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Wednesday 17 July 2013

मुम्बई की रातें फिर हसीं

मुम्बई डांस बार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आते ही भारत की औद्योगिक राजधानी मुम्बई की सात सालों से स्याह पड़ी रातें फिर से रंगीन होने वाली हैं|

मुम्बई में लगभग डेढ़ हजार के आस-पास छोटे-बड़े डांस बार थे, जिनसे लगभग २० हजार लोगों की रोजी-रोटी चलती थी लेकिन सात साल पहले मुम्बई सरकार ने इन डांस बारों पर वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देने, डांस बार की आढ में अपराध का बढ़ना और डांस बार में काम करने वाली लड़कियों के यौन शोषण और इन लड़कियों के उत्तेजक नृत्यों द्वारा अश्लीलता परोसने का आरोप लगाते हुए इन डांस बारों पर रोक लगा दी थी| जिसके चलते बार संचालकों ने हाई कोर्ट में अपील की थी और हाई कोर्ट ने डांस बार के पक्ष में ही फैसला दिया था, जिसे राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी... लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसला ही सही ठहराया| जिसके चलते मुंबई में अब डांस बार फिर से खुल जाएगें|

वस्तुतः सरकार की यह सभी दलीलें सत्य के बहुत करीब हैं, परन्तु रोक लगाने से पहले और बाद में सरकार ने इन डांस बारों में काम करने वाली लड़कियों के पुनर्वास और भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोचा और न ही कोई ठोस कदम उठाया| जिसका नतीजा यह निकला कि राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट और बार संचालकों के हाथों मुँह की खानी पड़ी|

डांस बारों पर रोक लगाने के बाद यह सरकार का जिम्मा था कि इन बार में काम करने वाली लड़कियों को सरकारी/ गैर सरकारी संस्थानों में नौकरी दिलवाती और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करती| समाज हमेशा से मानकर चला आ रहा है कि इन बार में काम करने वाली लड़कियों का चरित्र और नैतिकता से कोई सरोकार नहीं होता है, इसलिए डांस बार के अलावा कहीं और काम करने से उनका यौन(वेतन) शोषण) न हो| लेकिन इन लड़कियों को समाज में पुन: स्थापित करना तो दूर सरकार इनके लिए आजीविका तक का प्रबंध न कर सकी|

दूसरी तरफ समाज के बुद्धिजीवियों और ठेकेदारों का मानना है कि इन बार बालाओं के पास, बार में नाचने के अलावा आजीविका कमाने के बहुत से साधन हैं परन्तु जब इन महानुभावों से विकल्पों के बारे में पूछा जाता है तो चरित्र और नैतिकता पर भाषण सुना देते हैं लेकिन स्पष्ट विकल्पों के बारे में कोई बात नहीं होती|

आज भारत में इंजीनियर, एमबीए, बी.एससी/बीए किए लोगों को नौकरी नहीं मिलती, ऐसे में इन अनपढ़ डांस बालाओं को कौन सी नेशनल/मल्टीनेशनल कम्पनी अपने यहाँ काम पर रखेगी, जब इन लड़कियों को समाज में कोई सम्माननीय स्थान नहीं प्राप्त है, लोग इन लड़कियों में मुँह पर इन्हें वैश्या बोलते हैं और यदि स्वयं कोई लघु उद्द्योग खोलने के लिए पैसे होते तो ये लड़कियाँ डांस बारों में नाचती हुई नज़र नहीं आती| सरकारी या गैर सरकारी बैंकें और संस्थान उन्हीं की मदद के लिए पैसा देती हैं जिनके पास पहले से पैसा होता है| परन्तु सरकार इनके पुनर्वास के लिए कोई कदम उठाना ही नहीं चाहती थी, जिसके चलते बहुत सी लड़कियों ने आत्महत्या कर ली और बहुत सी अपने परिवार के साथ भूखों मरने के लिए सड़क पर आ गई|

सरकार का डांस बार पर रोक लगाने का कदम बहुत हद तक स्वयं में वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देने वाला था| जिन लड़कियों को अपनी और परिवार की आजीविका जुटाने का कोई साधन नहीं मिला वो मजबूर होकर वेश्यावृत्ति में आ गईं जबकि पहले वो सभी शराब परोसने और नाचने तक ही सीमित थी|

राज्य सरकार का यह कहना कि इन डांस बार से आम जनता का चारित्रिक एवं नैतिक पतन हो रहा है, कुछ ज़्यादा ही हास्यास्पद है| लगता है सरकार और उसके नुमाइंदों की आखों में दृष्टिदोष है या फिर काला चश्मा चढा है क्योंकि देश का फिल्मीस्तान मुम्बई ही है, जहाँ लगातार अश्लीलता युक्त पिक्चरें एवं गाने बन रहे हैं| मुम्बई सरकार को फिल्मों के माध्यम से परोसी जा रही अश्लीलता नज़र क्यों नहीं आती| जब हीरोइनें मुन्नी, शीला या फेवीकोल जैसे गानों पर उत्तेजन और अश्लील इशारों के साथ नाचती हैं तब उन्हें सर्वश्रेष्ठ नायिका का पुरस्कार मिलता है वही दूसरी तरफ़ यही गाने डांस बार में बजते है तो अश्लीलता का ठप्पा चस्पा कर दिया जाता है|

बड़े पर्दे की बात करें तो कटरीना, करीना से लेकर राखी, पूनम पांडे जैसी हर हिरोइन नंगेपन पर उतारू है| सलमान, शाहरुख हर सीन में अपनी शर्ट उतारे फेंकते हैं और इमरान हाशमी टाइप लोग तो नायिका के होंठ तक चबा डालते हैं| इंटरनेट पर हिरोइनों के न्यूड वीडियो और फ़ोटोआसानी से उपलब्ध हैं| वही टीवी पर हर सीरियल में सुहागरात के सीन पूरी तन्मयता से शूट करके दिखाए जा रहे हैं| जिसे युवाओं के साथ-साथ बच्चे और बड़े-बूढ़े भी पूरे परिवार के साथ इनके नंगेपन को देखने को मज़बूर हैं| ऐसे में सरकार द्वारा अश्लीलता को लेकर निर्धारित गाइडलाइन कहाँ?

सभी जानते हैं फिल्म उद्द्योग में आने वाली दस में से आठ लड़कियों का यौन शोषण होता है| फ़िल्म में छोटे से रोल के लिए एक नई लड़की को कितने ही लोगों को खुशकरना होता है| मिस इंडिया/वर्ल्ड और इसके जैसी ही अन्य सौंदर्य प्रतियोगितायें न जाने कितनी ही बार विवादों में घिरती है| लेकिन वहाँ सरकार कुछ नहीं बोलती और न कोई कार्यवाही होती है|

मेट्रो शहरों में संचालित मसाज पार्लर, फ्रेंडशिप क्लबों में अमीर घरानों के लड़के-लड़कियाँ होती हैं जो आजीविका के लिए कम मौज-मस्ती के लिए ज़्यादा जाते हैं इसलिए सरकारें और पुलिस दोनों ही चुप्पी साधे रहती हैं| बड़े बड़े राजनेताओं के घर पार्टियों में क्या होता है!!! ये किससे छुपा है| यूँ ही सेक्स रैकेट संचालकों की डायरियों में इन नेताओं और अफसरों के नंबर नहीं होते|

यदि सरकार और पुलिस समाज के चारित्रिक एवं नैतिक उत्थान के लिए कटिबद्ध है तो उसे शराब और गुटखा बनाने वाली कंपनियों पर रोक लगानी होगी| फिल्मीस्तान द्वारा परोसी जा रही अश्लीलता को रोकना होगा| इंटरनेट पर उपलब्ध असमाजिक सामग्री को हटाना होगा|

अफ़सोस है... मुम्बई सरकार बार बालाओं के पुनर्वास और उनकी आजीविका के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई परन्तु इतनी उम्मीद सरकार और पुलिस से कर ही सकते है कि वो हाल में लाइलेंस के साथ खुलने वाले डांस बारों पर पैनी नज़र रखेगी, जिससे बार में अश्लीलता न परोसी जा पाए और न ही लड़कियों को वेश्यावृत्ति की ओर धकेला जाय|