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Saturday 9 June 2012

"डियो लगाओ और लड़की पटाओ "

आजकल कोई भी चैनल देखो टीवी पर, एक ही प्रकार के  विज्ञापन  दिखाई देता है|
"डियो  लगाओ  और  लड़की  पटाओ " 
एक डियो के विज्ञापन में- एक लड़का अपने ज़िस्म पर ऊपर से लेकर नीचे तक डियो की आधी बोतल जैसे ही स्प्रे करता है, दुनिया भर की तमाम लड़कियां उसके कमरे आ धमकती है| एक और दूसरे विज्ञापन में जैसे ही लड़का फलां कम्पनी का डियो लगाता है समुद्रतट पर खड़ी लड़कियाँ  उस पर टूट पड़ती है और विज्ञापन सांकेतिक रूप से दिखाता है कि लड़का, लड़कियों के अंत:वस्त्र खोल रहा है |
कोई भी विज्ञापन देखो, सबका एक ही मकसद है- लड़की पटाओ| इसके अलावा तो टीवी में कुछ आता ही नहीं| फलां साबुन से नहाओ, फलां शैम्पू लगाओ और लड़की को पटाओ|


ऐसे ही एक और विज्ञापन आता है टीवी के "प्राइम टाइम" पर महिलाओं के अंत:वस्त्रों का- बाज़ार में घूमती कुछ लड़कियाँ एक लड़के को देखकर आपस में बोलती है कि वो हमारे वक्ष देख रहा है ... "क्या हमारे अंत:वस्त्र ठीक नहीं है " ? 


ये क्या है ? इतने वाहियात और घटिया विज्ञापन बनाने का उद्देश्य क्या है?  उत्पादक कम्पनी अपने विज्ञापन में क्या दिखाना चाहती है? क्या आज के युवा पीड़ी के पास सेक्स के अलावा कोई और काम नहीं है करने के लिए ? क्या लड़के/लडकियां पटाना ही उनके जीवन का पहला और आख़िरी उद्देश्य है? अगर  डियो लगाने से ब्रम्हांड की सभी लड़कियाँ पट जाती है तो फिर क्यों सड़क चलते हुए लड़कियों से छींटाकशी और छेड़छाड़ होती है? क्यों लडकियां बलात्कार की शिकार हो रही है?
अरे फलां नामचीन कम्पनी का डियो लगाओ और लडकियां  डियो की गंध से आपके पीछे पीछे भागती चली आयेगी|


महिलाओं के कोई भी उत्पाद ले लो .... बॉडी लोशन से लेकर ब्रा तक या फिर लिपस्टिक से लेकर व्हिस्पर तक हर विज्ञापन में वो लड़कों को पटाती नज़र आती है और लड़के आसानी से पट भी जाते है|
अरे फलां कम्पनी का बॉडी लोशन लगाने से या किसी बड़ी प्रतिष्ठित कम्पनी की चाय पिलाने से लड़के और उनके घर वाले पट जाते हैं तो क्यों अपने देश में दहेज प्रथा अभी तक बंद नहीं हुई है?


सिर्फ नामचीन कम्पनी का डियो लगाने भर से लड़कियां नहीं पटती और न प्रतिष्ठित कम्पनी के बॉडी लोशन से लड़के !
सच तो ये है आज भी लडकियां, लड़कों के व्यक्तित्व और विचारों को प्राथमिकता देती है और लड़के, लड़कियों की शालीनता और संस्कारों को|


समय बदल गया, शताब्दी बदल गई पर आज भी नैतिक मूल्य नहीं बदले और न हीं ये बुद्धू बक्सा बदला! कल की तरह ये बुद्धू बक्सा आज भी बुद्धू ही है|










1 comment:

  1. Bahut khub. Samaj ki 1 kadwi sachchayi par jis tarah tumne apne shabdon k hunter chalayen hain, waaqayi qaabile taarif hai.

    Aur ye 1 bahut badi haqiqat hai ki budhdhu bakse aur us se bahar ghatne wali ghatnao me zamin aasmaan ka farq hai.

    Is sandarbh me mujhe rakhi saawant ka 1 statement yaad aata hai jisme usne kaha tha ki yahan ya tto shahrukh bikta hai ya sex.

    Waakayi ye sochniya hai ki hum ja kidhar rahe hain.

    Aise hi sachetak lekhon ki ummid karte huye haardik shubhkaamnaaye mani.

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