ये बात
कितनी सही है और कितनी गलत, इस बात का अंदाज़ा नहीं
लगाया जा सकता है|
मेरे घर के ठीक सामने एक
तिमंजिला मकान है... जो पिछले एक सप्ताह से तोड़ा जा रहा है और लगभग आधे से ज्यादा
टूट चुका है|
मकान मालिक को मैंने कभी नहीं देखा, शायद उनकी मृत्यु
बहुत पहले हो चुकी है और अपने पीछे वो अपनी पत्नी, दो बेटियाँ और चार बेटे छोड़ गए और ये मकान(जो हाल में तोड़ा जा रहा
है)| मरने से पहले वो अपने सभी कर्तव्य पूरे कर चुके थे |
मकान मालिक महोदय ने अपने
ज़िंदा रहते ही अपनी वसीयत बना दी थी, जिसमें भूमितल और द्वितीय
तल अपने सबसे छोटे बेटे के नाम कर दिया| प्रथम तल
बाकी बचे अपने तीन बेटों में बाँट दिया|
और मकान मालिक की पत्नी
छोटे बेटे के हिस्से में आई| बेटियों को तो अपने समाज में वैसे भी कुछ नहीं
दिया जाता है, ऊपर से ब्याहता बेटियों को तो कुछ भी नहीं,इसलिए
उनकों कुछ नहीं मिला|
छोटे बेटे ने कुछ दिनों तक
अपनी माँ को साथ रक्खा और एक दिन उसने अपनी बूढ़ी माँ को घर से निकाल दिया| वो और उसकी पत्नी एक बूढी
माँ खाना नहीं दे सकते है, रहने को एक कमरा नहीं दे सकते है और पहनने को एक सूती धोती |
बेचारी बेबस माँ क्या करती ? बैठी रही मौत के इंतज़ार में...पर मौत नहीं आई | मौत की बज़ाय छोटी बेटी आ गई और माँ को अपने साथ लेकर चली गई|
आज वो बूढी माँ ज़िंदा है या
मर गई, मुझे नहीं पता... मैं यहाँ
बेटी की प्रशंसा नहीं करना चाहती!
बेटों ने मकान बेच दिया और
कीमत आपस में बाँट ली| प्रश्न तो ये है कि एक पति ने सही किया अपनी पत्नी के साथ? जिस औरत का हाथ पकड़
कर सात फेरें लिए थे, उसके बुढ़ापे के लिए एक बोरा अनाज को अपनी वसीयत में जगह न
देना सही है? जिस औरत के साथ मिलकर उसने
अपने वंश को बढ़ाया, उसको बुढ़ापे में तन ढकने के लिए दो धोतियो का पैसा
नहीं देना... सही है?
जिस औरत ने पति के साथ
मिलकर अपने हाथों से घर बनाया था, क्या उसके नाम पर एक कमरा
नहीं करना चाहिए था? क्या अपनी पत्नी को बेटों के आश्रित छोड़ना सही निर्णय है?
औलादें तो नालायक होती है, पर वो पति कैसे इतना निष्ठुर हो सकता है, जिसके सुख दुःख में औरत
बराबर साथ देती है!
भारत में आज भी औरतें अपना
अलग वज़ूद नहीं तलाशती, वो किसी की बेटी, पत्नी और माँ बन कर ही खुश
है पर सम्मान की दो रोटी की उम्मीद तो रख ही सकती है अपने पति और अपने
बेटे से?
समझ पाना बहुत ही मुश्किल
है कि कौन अपना है... वो पति; जिसके सुख दुःख को अपना
समझा, जिसके वंश को आगे बढ़ाया, जिसके नाम पर अपनी पूरी जवानी कर दी|
या फिर वो औलादें जिनको नौ
महीने अपनी कोख में पाला, जिनका मल-मूत्र साफ़ किया,अपना खून जला कर दूध
पिलाया! या फिर कोई नहीं है...
क्या औरतें! सुबह खाना
बनाने वाली नौकरानी और रात में सिर्फ सोने भर की चीज़ है?
Ek dukhdaayi sach hai ye mani. Aur is pe baki bache logon ko gambhirta se vichaar karna chahiye.
ReplyDeletekisi ko koi parwah nhi hai ... apne maa ki ... sab khudgrj hai .... wo apni bivi bachcho me kush hai ... maa ko ghar se nikaal kar
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