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Friday 14 December 2012

पैसा पैसा पैसा...



आजकल शादियों का मौसम चल रहा है| रोज़ ही किसी न किसी विवाह समारोह में जाना होता है| विवाह स्थल की भव्यता, सुंदरता और विशालता देखकर कोई नहीं कह सकता है कि मनमोहन सरकार ने मंहगाई को अपने चरम सीमा पर पहुँचा दिया है| भोजन में विविधताएं, वधू के परिधान और आभूषण देखकर तो बिल्कुल भी नहीं लगता कि आम आदमी मंहगाई की मार झेल रहा है| परन्तु इतनी भव्यता के पीछे कहीं न कहीं कन्या के अभिभावक पर लड़के वालों का अच्छा-ख़ासा दबाव भी होता है| कुछ परिवार इतनी भव्यता पर पैसे खर्च करने में सक्षम होते हैं परन्तु अधिकतर परिवार समाज और लड़के वाले के दबाव के कारण इतना बड़ा आयोजन करते हैं|

हम सब रोज़ ही राग अलापते हैं कि दहेज लेना अपराध है| दिनभर बैठकर घंटों बहस करते हैं| सरकार ने भी दहेज पर रोक लगा दी पर यह कितनी कारगार साबित हो रही है, सबको दिख रहा है| मेरे हिसाब से दहेज मामले में सिर्फ लड़के वालों को दोष देना बिल्कुल भी न्यायोचित नहीं है| दहेज के मामले में कन्यापक्ष भी बराबर का दोषी है|

एक योग्य सक्षम लड़के के लिए दस-बारह रिश्ते आते हैं, उनमें से जो लड़की सर्वगुण सम्पन्न होती है उसी के साथ रिश्ता तय किया जाता है| परन्तु जब सभी लडकियां समानरूप से सक्षम और योग्य है तो लड़का और उसके घर वाले पैसे को ही वरीयता देते हैं और ठीक यही स्थिति लड़कियों पर भी लागू होती हैं, उनके घरवाले भी अपनी बेटी के लिए अमीर लड़के को ही चुनते हैं| अक्सर ऐसा होता है कि लड़की वाले मनपसंद लड़का हथियाने के लिए मोटी से मोटी रकम दहेज के रूप में देने को तैयार रहते हैं| और कई बार तो अपनी अयोग्य लड़की के लिए अभिभावक इतनी बड़ी रकम बोल देते हैं कि लड़के वाले इनकार ही नहीं कर पाते हैं, क्योंकि मुफ्त का पैसा काटता किसे है?

वहीं दूसरी तरफ़ लड़के वाले भी यही सोचते हैं कि शर्मा जी के बेटे को कार मिल सकती है तो मेरे बेटे को क्यों नहीं| दूसरों को जब इतना दहेज मिल रहा है तो मुझे भी दहेज चाहिए और जब कोई लड़की वाले इन जैसे लोगों के घर जाते हैं तो यह लोग खुद ही दहेज की माँग करते हैं| अपने बेटों के दहेज को लेकर लड़कीवालों से मोल-भाव करते हैं| कभी कभी तो लड़केवाले अपनी और सामने वाले की औकात से ज्यादा दहेज माँग लेते हैं| खुद के रहने के लिए घर नहीं है पर दहेज में कार चाहिए| मोटरसाइकिल में पेट्रोल भरवाने के पैसे नहीं है उन्हें दहेज में मोटरसाइकिल चाहिए|  बहुत से घर तो ऐसे हैं जिनके घर में अच्छा-ख़ासा पैसा है फिर भी बेटों की शादी में दहेज लेकर घर में संगमरमर के पत्थर जड़वाते हैं| दहेज में आए पैसों से टूटी बालकनी बनवाते हैं| आठ-दस लाख कैश लेकर दम भरते हैं कि हमने तो उस पैसे से बहू के लिए जेवर बनवा दिया, हमने अपने पास कुछ नहीं रखा|

निर्लज्जता की हद तो तब होती है कि इतना दहेज लेने के बाद भी लोग सुशील, सर्वगुणसंपन्न और मृदुभाषी बहू चाहिए| लड़कीवाले अपने मन से दहेज दें या उनसे माँगा जाए, दोनों ही सूरतेहाल में हर पिता अपनी बेटी को सुबह मंजन वाले ब्रश से लेकर रात को सोने के लिए बेड तक देता है और इतना देता है कि कम से कम तीन-चार साल तक लड़के वालों को अपनी बहू को कुछ नहीं देना होता है, फिर भी ९०% लोग अपनी बहू और उसके मायकेवालों से कभी संतुष्ट नहीं होते हैं|

मैं अपने एक मित्र की बात से पूर्णतयः सहमत हूँ, उन्होंने एक दिन मुझसे कहा था कि “अगर लोगों को लगता है कि शादी एक बिज़नेस है तो फिर दोनों पार्टियों को आमने-सामने बैठकर बराबर से अपने नफ़ा-नुकसान की चर्चा करनी चाहिए| किस डील में कितना मार्जिन है, इसको कैलकुलेट करके ही डील फाइनल करनी चाहिए वरना जैसे शादियाँ होती हैं वैसे ही शादी करनी चाहिए”|

विवाह एक ऐसी संस्था है, जो प्राकृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से सर्वोत्तम व्यवस्था है| इस संस्था में प्रेम और समर्पण की आवश्यकता होती है न कि पैसों की| विवाह की आवश्यकता किसी एक व्यक्ति या एक परिवार की नहीं हैं| मैं यह नहीं कहती कि किसी से भी शादी कर ली जाए| क्योंकि शादी ताउम्र का बंधन है जिसे सोच समझकर लेना चाहिए| व्यक्ति की योग्यता और क्षमता ज़रूर देखनी चाहिए पर दौलत की गिनती नहीं करनी चाहिए| प्रेम के प्रारंभिक दौर में शारीरिक आकर्षक बहुत मायने रखता है परन्तु चेहरे के साथ साथ साथी का हृदय और मस्तिष्क भी देखना भी बहुत ज़रुरी है| प्रकृति ने सबको अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार दिया है क्योंकि यही प्रकृति के सफ़ल संचालन का अटूट और सत्य नियम है जिसका निर्वाह प्रेम के आधार पर ही किया जाना चाहिए न कि पैसों के आधार पर| और अगर हमें इस दहेजप्रथा से निज़ात चाहिए तो हमें दहेज न लेने पर नहीं दहेज न देने पर दृड़प्रतिज्ञ होना पड़ेगा| 

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