like

Saturday 13 April 2013

मधुबाला... एक इश्क़ एक जुनून

कलर्स चैनल के प्राईम टाइम पर आने वाला सीरियल "मधुबाला... एक इश्क़ एक जुनून" मैं रोज़ देखती हूँ, इस धारावाहिक की पटकथा, कलाकरों की संवाद अदायगी और अभिनय की जितनी तारीफ़ की जाय, उतना कम है| धारावाहिक के मुख्य पात्र "मधुबाला और ऋषभ कुंद्रा उर्फ आर.के." ने सीरियल को एक नया आयाम दिया है| यह धारावाहिक एक नारी के आत्मसम्मान और पुरुष के अंहकार का टकराव पर आधारित है| टीवी पर आने वाले अधिकतर धारावाहिकों में नारी, पुरुष के अंहकार के चलते स्वयं के आत्मसम्मान को नकार देती है या कमतर आँकती है परन्तु इस धारावाहिक में मधु का आत्मसम्मान हमेशा आर.के. के अहं से टकराता है पर टूटकर बिखरता नहीं है|

हालांकि जब इस सीरियल के प्रीव्यू प्रोमोशनल विज्ञापन आते थे तो मुझे बहुत कोफ़्त होती थी, मुझे लगता था... टीवी वाले न जाने कैसे कैसे सीरियल शुरू कर देते हैं, 'फुलवा" खत्म हुआ तो "मधुबाला" शुरू कर दिया| एक भी ढंग का सीरियल नहीं देते हैं| इसके शुरू होने से पहले ही मैंने इसको "घटिया" नाम दे दिया था और बाकी बची रही-सही कसर इसके शुरुवाती एपिसोड्स ने पूरी कर दी| मैंने इसको न देखने का पूरा पक्का इरादा कर लिया था लेकिन मेरे घर में सब मन से "मधुबाला" देख रहे थे और मैं मन मार कर, मजबूरी में देख रही थी.... कभी देखा और अक्सर नहीं देखा पर समय के साथ साथ मधुबाला की पटकथा सशक्त और संवाद दमदार होते गए और मुझे इस धारावाहिक में रोमांच आता गया| आज मैं इसको नियमित देख रही हूँ| 

"पहले  'आर.के. .... द सुपरस्टार' मधुबाला के मारे हुए एक थप्पड़  बदला लेने के लिए मधुबाला से अधूरी शादी करता है, उससे प्यार करने का झूठा नाटक करता है और जब मधुबाला सच में आर.के. की मुहब्बत में गिरफ़्त हो जाती है तो वह उसे छोड़ देता है| मधुबाला को अपनी पत्नी मानने से इनकार कर देता है और जब छोड़ी हुई मधुबाला की दोस्ती एक अन्य शख़्स "सुल्तान" से हो जाती है तो आर.के. के अंदर मरा हुआ पतिभाव जाग उठता है| अब मधु को फिर से पाना चाहता है... वह बार बार मधुबाला से एक ही प्रश्न करता है "क्या मधु आज भी सिर्फ़ उससे ही प्यार करती है" और मधु के हाँ कहते ही उसके चेहरे पर अजीब सी खुशी छा जाती है, अजीब-सा संतोष उसके पूरे असंतोष मन पर काबिज़ हो जाता है" यह थी अब तक की फिल्मांकित "मधुबाला... एक इश्क एक जुनून" की पटकथा|

अधिकतर धारावाहिक औरतों को नकारात्मक दृष्टिकोण से पेश करता है|
परन्तु पहली बार यह धारावाहिक बहुत बेहतर तरीके से पुरुषों के अंदर बसी असुरक्षा, अहं, कुंठा और स्वार्थ का चित्रण कर रहा है| पुरुष जब भी किसी औरत से प्रेम या प्रेम का झूठा नाटक भी करता है तो उसे वह औरत "कोरी" ही चाहिए| उसे आज २१वीं शताब्दी में भी बर्दाश्त नहीं होता है कि उसकी ज़िन्दगी में आने वाली औरत को पहले किसी दूसरे पुरुष ने छुआ हो और ज़िन्दगी से बाहर जाने के बाद उस औरत को कोई दूसरा आदमी छुए| पुरुष एक औरत के होते हुए भी हर औरत पर अपना हक़, अपनी मर्दानगी जता सकता है लेकिन यही काम अगर औरत करे तो उसके अहं को, उसके पुरुषत्व को ठेस लगती है| उस औरत को बज़ारू और वैश्या कहने लगता है|

पति शादी से पहले के सम्बन्ध बहुत गर्व से साथ पत्नी के साथ बताता  है, क्योंकि बहुत हद तक ये सम्बन्ध उसकी मर्दानगी(अक्सर कायरता क्योंकि मर्द होता तो उसी से शादी करता, जिससे प्यार या प्यार का नाटक किया) को दर्शाते हैं और उसे यह भी अच्छी तरह मालूम होता है कि उसकी पत्नी उसे छोड़कर नहीं जा सकती और अगर कभी छोड़ने की सोचे भी तो समाज, परिवार उसे छोड़ने नहीं देगा| 

परन्तु अगर कोई लड़की अपने प्रेम और प्रेमी की बातें पति को बता दे... तो पति इसे हज़म नहीं कर पाता है| उसे स्वीकर नहीं कर पाता है| हर वक्त उसे ताने मारता है और शक़ करता है| उसे लगता है उसे "जूठन" मिली है| पति सारी ज़िन्दगी पत्नी को अपना नही पाता है| उस पर बदचलन होने का ठप्पा भी लगा देता है| गाहे-बगाहे पत्नी की बेइज्जती करता फिरता है और पत्नी को बुरा मानने का अधिकार भी नही देता है परन्तु पत्नी कभी भी पति का अपमान या विरोध नहीं कर सकती... क्योंकि पति परमेश्वर है, कर्ता-धर्ता है| 

पुरुष हमेशा दोहरी मानसिकता के साथ जीते हैं| स्वयं के लिए सात खून माफ़ पर....औरत के लिए, नज़र उठा कर देखना भी गुनाह है| आज के परिवेश में भी स्त्री-पुरुष बराबर नहीं है... औरत आज भी दोयम दर्ज़े पर खड़ी है  और शायद ही भविष्य में कभी उसे  पुरुष के बराबर का दर्ज़ा मिले| पुरुष कैसा भी हो वह स्वीकार्य है पर स्त्री का सती-सावित्री होना अपने समाज की पहली और आख़िरी प्राथमिकता है|

No comments:

Post a Comment