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Thursday 4 April 2013

अंधकार में छुपा प्रकाश


अंधकार का नाम या वर्णन आते ही हमारा मन-मस्तिष्क एक अजीब से कालेपन से जूझने लगता है और हम इस स्याह परिदृश्य से बाहर निकलने के लिए स्वयं से जद्दोजहद करने लगते है| हर किसी को अंधकार से ईर्ष्या है, हम में से कोई भी अंधकार में नहीं रहना चाहता है| सबको प्रकाश चाहिए, उजाला चाहिए| हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए हैं उनका मानना है कि प्रकाश ही सत्य है, जीवन है, जीवन का आधार और उद्देश्य है, मोक्ष है| प्रत्येक मनुष्य को अपना सारा जीवन सत्य की खोज में व्यतीत करना चाहिए| चाहें गौतम बुद्ध हों या स्वामी विवेकानंद, नानकदेव जी हों या सम्राट अशोक सबने अपना जीवन प्रकाश की खोज में लगा दिया और बहुत हद तक उन्हें अपने प्रश्नों के उत्तर भी मिले, उन्हें सत्य के दर्शन हुए, प्रकाश को समीप से पहचाना| परन्तु किसी ने भी अँधेरे के आस्तित्व पर कभी प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया|

अंधकार तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में युगों युगों से व्याप्त है, हर उस जगह उसका बसेरा है जहाँ प्रकाश की पहुँच नहीं है| अंधकार हमारे वातावरण, हमारे अंतस में है| जब चारों ओर अंधकार का अधिकार है तो क्यों हम उसे पहचानने से मुकर रहे हैं| क्यों उसके आस्तित्व पर अंगुली उठा रहे हैं| अंधकार की विशेषताएँ क्यों नहीं देखते हैं| हर खोटी चीज़ में अच्छी चीज़ के समान ही गुण होते है, हमें बस अपने विश्लेषण का दृष्टिकोण बदलना होगा| अंधकार से हम इतना डरते क्यों करते हैं? काले से इतनी नफ़रत क्यों करते हैं... जबकि काला तो अपना कन्हईयाँ भी है| यह अंधकार न होता तो शायद कंस के बंधन से कृष्ण को मुक्त करना असम्भव था| यमुना भी काली होते हुए जीवनदायनी है| चाँद-चाँदनी का मिलन भी रात के घनेरे में होता है, जो जीवन का मूलाधार है| भौंरा भी काला है पर कुमुदिनियों का प्राण-प्यारा है|

अक्सर लोग कहते हैं कि कभी प्रकाश और अंधकार के मध्य युद्ध हुआ था और प्रकाश जीत गया, तभी से प्रकाश  सूर्य के रथ पर सवार होकर अंधकार का सर्वनाश करने के लिए निकलता है और अंधकार अपना आस्तित्व बचाए रखने के लिए कोनें, कोटरों, झुरमुटों में छुप जाता है परन्तु मुझे तो यह कथा कपोलकल्पित लगती है क्योंकि जब ब अंधकार आता है तब प्रकाश की कोई किरण दूर दूर तक नज़र नहीं आती है| चारों तरफ़ घनेरा होता| अँधेरा तो प्रकाश को कोनों कोनों से खदेड़ देता है| जबकि प्रकाश को मालूम होता है कि अँधेरा कोटरों में छुपा है पर उसकी हिम्मत ही नहीं होती कि वह अंधकार से से दो-दो हाथ करने के लिए कोटरों में जा सके|

वैज्ञानिक तथ्यों का आलम्बन लें या व्यवहारिक कृत्यों का, दोनों ही सिद्ध करते हैं कि प्रकाश को स्वयं के विस्तार के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है, वह एक सीधी दिशा में ही चलता है, मार्ग में अवरोध आ जाने पर उसका प्रसार-प्रचार अवरुद्ध हो जाता है| प्रकाश को अपना आस्तित्व बचाए रखने के लिए सूर्य और दीये का सहारा चाहिए जबकि अंधकार अपनी मनमानी गति से चहुँदिश बढ़ता है क्योंकि वह आत्मनिर्भर है, मार्ग में हजारों अवरोधों के बावज़ूद दोनों तरफ़ समानरूप से स्याह और सघन रहता हैं| बादल, हवा एवं अन्य कारक प्रकाश के साथ जैसा छल करते हैं वैसा छल वो अंधकार के साथ नहीं कर पाते क्योंकि अंधकार आत्मनिर्भर है|

विश्व के महानतम महापुरुषों ने कभी भी अँधेरे के आस्तित्व को नहीं नकारा बल्कि उन लोगों ने अपने अंतस और बाह्य मौज़ूद अंधकार को पहचाना| उनकों मालूम था कि सृष्टि से अँधकार का समूल नाश नहीं किया जा सकता| वह भी प्रकाश की तरह ब्रम्हांड का अकाट्य सत्य है, इसलिए उसको मिटाने का नहीं वरन कम करने का प्रयास किया| उन्होंने अथक प्रयास किया, अँधकार को जानने के लिए, पहचानने के लिए| उसकी थाह पाने के लिए उसकी गहराई में उतरे और जितना वो गहराई में जाते गए, उन्हें उनका ही विशाल प्रकाश-द्वार मिलता गया क्योंकि प्रकाश-द्वार, अंधकार के मुँहाने पर ही खुलता है|

अंधकार और प्रकाश एक सिक्के के ही विपरीत पहलू हैं| सिक्के के सिर्फ़ एक पहलू का कलेवा करके उसके सहारे आगे नहीं बढा जा सकता| हम जितनी तत्परता से प्रकाश की खोज कर रहें हैं, उतनी ही उत्सुकता से हमें स्वयं को अंधकार में विलीन करना होगा| कोई भी मनुष्य अंधकार को नहीं जानना चाहता, शायद वह काला है, सघन है, घोर है परन्तु हम यह कैसे भूल सकते है कि प्रकाश की भांति ही अँधकार भी पृथ्वी का अस्तित्व बनाए रखने में सराहनीय भूमिका अदा कर रहा है| हमें अंधकार की थाह पानी ही होगी, उसकी गहराई नापनी होगी| प्रकाश के आस्तित्व को पाने के लिए अँधेरे को आत्मसात करना ही होगा| बिना अंधकार को जाने हम कभी भी प्रकाश को प्राप्त नहीं कर सकते| 

6 comments:

  1. बहुत ही गहन और बेहतरीन आलेख है।


    सादर

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    1. शुक्रिया माथुर जी

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  2. अंधकार के साथ नहीं कर पाते क्योंकि अंधकार आत्मनिर्भर है........बिना अंधकार को जाने हम कभी भी प्रकाश को प्राप्त नहीं कर सकते|
    बहुत सही कहा आपने और बहुत अच्छा आलेख, आपको बधाई

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  3. आपने बिल्कुल सही कहा

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  4. यशवंत जी, आपके स्नेह की सहृदय आभारी हूँ

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