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Wednesday 5 September 2012

तुम्हारा कोई एहसान नहीं


सलमान खान की फ़िल्म बॉडीगार्ड का एक डायलॉग “मुझ पर एक एहसान करना कि मुझ पर कोई एहसान न करना” सबको याद होगा| यह डायलॉग स्वयं में कितना अतार्किक और विरोधाभाषी है| खुद ही कह रहा है कि मुझ पर कोई एहसान न करके एक एहसान कर दो| जब से यह डायलॉग मार्केट में आया है कई लोगों ने इसे अपने जीवन का सूत्र बना लिया है| जब कोई दूसरा व्यक्ति उन लोगों की मदद करता है तो वह लोग मदद करने वाले के मुँह पर यह डायलॉग उठाकर मारते नज़र आते हैं और खुद को सम्पूर्ण आत्मनिर्भर बताते हैं पर वह लोग भूल जाते हैं कि वास्तविक जीवन और रजत पटल पर चित्रित जीवन में बहुत अंतर होता है|

कुछ लोग हमेशा यह दिखाना चाहते है कि उनके जीवन पर किसी का कोई एहसान नही है| उन्होंने सब कुछ अपने दम पर हासिल किया है और आगे अपने दम पर ही हासिल करेगें| उनकी उन्नति-अवनति, जीत-हार में किसी का कोई हाथ नहीं है| वह लोग किसी से मदद नहीं लेते| अपने काम के लिए किसी से सिफ़ारिश नहीं करते पर  वास्तविक जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति है ही नहीं जिसने कभी किसी का एहसान न लिया हो और किसी पर कोई एहसान किया न हो| यह लोगों का भ्रम है कि वह सम्पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हैं| उनके जीवन पर किसी का कोई उपकार नहीं है|

शायद लोग यह भूल जाते हैं कि हमारे जन्म पर हमारे माता पिता का एहसान होता है| माँ अपने गर्भ में हमें  आश्रय देकर जीवन को सुरक्षित करती है| माँ बिना किसी गिले-शिकवे के मल-मूत्र साफ़ करती है, हमें स्तनपान कराती है| एक पिता जीवन जीने के लिए हमारा धरातल तैयार करता है जिस पर खड़े होकर हम दंभ भरते हैं कि हमने अपने जीवन में कभी किसी का कोई एहसान नहीं लिया| हमारा शिक्षक, जो हमें जीवन का पाठ पढाता है| हमें अच्छे बुरे में अंतर करना सिखाता है| हम उसके सामने छाती चौड़ी करके बोलते हैं कि हमने सब अपने आप सीखा है और न जाने कितने रिश्ते हैं जो हमारे जीवन के संघर्ष में हर पल हमारे साथ खड़े रहते हैं पर वक्त बीत जाने पर हम उनके उपकारों को नकार देते हैं|

माँ-बाप से बढ़कर भी कोई है जो हमारे जीवन पर सबसे बड़ा एहसान करता है| उसके एहसान के ने बिना हम शायद जिन्दा ही नहीं रह सकते| वह और कोई नहीं हमारे चारों ओर की मनभावन प्रकृति है| हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रकृति, हम पर हर पल एहसान करती है| एक बार हमारे माता-पिता, हमारा शिक्षक हमें यह एहसास दिला सकते है कि उन्होंने हम पर एहसान किया है पर प्रकृति कभी भी हम पर अपना एहसान नहीं जताती है| हवा, पानी, सूर्य-चंद्रमा, यह धरती और न जाने कितनी ही प्राकृतिक चीज़ें हैं जो हम पर पल-पल एहसान करती हैं|

मनुष्य हो या जानवर सब कहीं न कहीं किसी के साथ ईर्ष्या, भेदभाव रखता है पर प्रकृति किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करती है| शायद ईश्वर ने प्रकृति को बुद्धि नहीं दी इसलिए वह हर पल निष्पक्ष रहती है| अगर हम जमीन में एक अच्छा बीज बोते हैं तो धरती हमें उस एक अच्छे बीज के बदले में कुंतल भर अच्छा अनाज देती है| लेकिन सड़ी-गली बीज बोने पर वह हमें सड़ा हुआ अनाज वापस नहीं करती| वह बिना शिकायत किए सड़ा हुआ बीज अपने अंदर समाहित करके खाद बनाती है और हमें पुन: अच्छी गुणवत्ता का अनाज देती है| मतलब हम जमीन में चाहें जैसा बीज बोएं वह हमें हमेशा अच्छा ही वापस करती है| पर हम ऐसे नहीं हैं... अगर हमसे कोई अच्छी बात करता है तो हम उससे कुछ नहीं कहते लेकिन जब कोई हमसे बुरी बात कहता है तो हम उसे झाड़ झाड़ दर्जन भर गालियाँ सुना देते हैं|

हम प्रकृति में उपलब्ध पानी को चाहें कितना भी गंदा क्यों न कर दें पर बरसात में प्रकृति हमें स्वच्छ पानी ही देती है| साँस द्वारा हम प्रकृति की स्वच्छ वायु को ग्रहण करते है और प्रकृति को अशुद्ध दूषित वायु वापस करते हैं, फिर भी प्रकृति हमसे कभी नहीं कहती कि हम उसकी वायु को साफ़ स्वच्छ करें| वह स्वयं अपने पेड़-पौधे रूपी सेवकों से हवा को निर्मल करवाती रहती है और हमें बिना शिकायत किए फिर से वापस देती रहती है| हमें प्रकृति से सीखना चाहिए कि कैसे लोगों पर एहसान करके भूल जाना  चाहिए परन्तु मनुष्यों के साथ ऐसा नहीं होता है, प्राय: जब वह उपकार करता है तब तो वह निस्वार्थ करता है परन्तु समय समय पर वह लोगों को अपने द्वारा किए गए उपकार को गिनाने ने नहीं चूकता है|

माना की मदद करने वाले अधिकतर लोग मदद करने के बाद अपने किए एहसानों को भूल जाते हैं पर हमें कभी भी उन एहसानों को नहीं भूलना चाहिए| हमें कभी भी उन व्यक्तियों का अपमान नहीं करना चाहिए, जिन्होंने हमें हमारे संघर्ष के दिनों में सहायता प्रदान की हो|

हमें स्वयं में और जानवरों में कुछ तो अंतर रखना ही चाहिए| जानवर अपने अविवेकी स्वभाव के चलते उसे ही सींग मारते हैं जो उसे भोजन देता है| जानवर कभी किसी का एहसान मानते हैं परन्तु इसका किसी को कोई अफ़सोस नहीं होता| अफ़सोस तो तब होता है जब विवेकी मनुष्य किसी का एहसानमंद होने की बज़ाय एहसानफ़रामोशी की सारी हदें पार करने लगता है| जब वह अपने बूढ़े माता-पिता की रोटियों की गिनती करता है| दुःख तो तब होता है जब वह प्रकृति का बराबर दोहन करने के बाद घमंड से कहता कि आज तक उसने किसी का एहसान नहीं लिया|

मेरी नज़र में किसी से एहसान लेना बुरी बात नहीं है, चाहें वह एहसान प्रकृति का हो या किसी व्यक्ति विशेष का; बस हमें एहसानफ़रामोश होने की बज़ाय हमेशा लोगों का एहसानमंद होना चाहिए| हमें अपनी उपलब्धि पर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि पृथ्वी पर बिना सहभाहिता के जीवन संभव ही नहीं है|


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