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Friday 14 September 2012

हाँ हिन्दी ही हैं हमारी मातृभाषा !!!



 भाषादोनों लोगों के बीच संवाद स्थापित करने का एक साधारण परन्तु सशक्त माध्यम हैभाषाज्ञान के अभाव में हम न तो किसी की भावनाएँ समझ सकते है और न अपने अतंर्मन की मनोस्थिति किसी को समझा सकते हैंभाषा ही समाज को सभ्य और सुसंस्कृत बनाती हैकिसी देश या संस्कृति की उन्नतिवहाँ की भाषा पर निर्भर करती हैभाषा जितनी समृद्धिशाली और सशक्त होगीदेश उतना ही विकसित और उन्नत होगा|

यदि हमको अपनी मातृभाषा पर अधिकार नहीं है तो हम किसी और भाषा पर अपना अधिकार स्थापित नहीं कर पाएँगे क्योंकि दूसरों पर हम तभी विजय प्राप्त कर सकते हैं जब हमें अपने आप पर पूर्ण अधिकार प्राप्त होहम चाहें कितना भी पढ़-लिख जाएँ अगर हमें अपनी मातृभाषा नहीं आती तो हम अपनों से दूर हो जाएंगेंहम कितनी ही भाषाओं के ज्ञाता क्यों न हो परन्तु चिंतन-मनन हमेशा अपनी मातृभाषा में ही करते हैं और यहाँ तक कि हम अपना रोष भी अपनी ही भाषा में प्रकट करते हैं|

भारत में लगभग ६३ भाषाएँ मान्यता प्राप्त हैं और इसके अलावा न जाने कितनी और भाषाएँ और बोलियाँ हैं जो प्रचलन में हैंदेवनागिरी लिपि के साथ हिन्दी भाषा को १४ सितम्बर १९४९ को राजभाषा घोषित किया गया थाभारत में हिन्दी मुख्यतः उत्तरप्रदेशमध्यप्रदेशपूर्वी राजस्थान और बिहार के कुछ हिस्सों में बोली जाती है परन्तु अन्य जगहों पर हिन्दी के साथ साथ स्थानीय भाषा भी प्रमुखता से बोली जाती हैसमय के साथ हिन्दी ने स्वयं को एक नई पहचान दी हैकुछ शिक्षाविदों और समाजसेवी संस्थाओं ने हिन्दी भाषा को विश्व पलट पर खड़ा करने में बहुत मदद की है|

हिन्दी भाषा से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य कुछ इस प्रकार हैं -:
  •  विश्व में लगभग ५० करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं|
  • विश्व में ८० करोड़ लोग हिन्दी समझ सकते हैं|
  • अंग्रेजी और चीनी भाषा के बाद हिन्दी तीसरी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है|
  • ब्रिटेन में वेल्स के बाद हिन्दी भाषा का स्थान दूसरा है|
  • फिजीमोरिशसगुयानासूरीनामट्रिनिडाडटाबैगो एवं संयुक्त अरब अमीरात में हिन्दी अल्पसंख्यक भाषा है|
  • दुनिया के करीब ११५ शिक्षण संस्थानों में हिन्दी का अध्ययन होता है|
  • अमेरिका के ३२ संस्थानों में हिन्दी पढ़ाई जाती है|
  • ब्रिटेन की लंदन यूनिवर्सिटीकैंब्रिज यूनिवर्सिटी एवं यार्क यूनिवर्सिटी में हिन्दी पढाई जाती है|
  • जर्मनी के १५ शिक्षण संस्थानों ने हिन्दी भाषा के अध्ययन को अपनाया है|
इसके अलावा बहुत से विदेशी साहित्यकारों ने हिन्दी भाषा में अपनी रचनाओं को कलमबद्ध किया हैजिनमें से किम यांग शिक (दक्षिण कोरियाई साहित्यकार)विक्टोरिया सेलेना (रूसी साहित्यकार)प्रोफ़ेसर विड हान (रामचरित मानस का चीनी भाषा में अनुवाद किया है)प्रोफ़ेसर ओडोलीन सीमीचेल ने तो बहुत सी रचनाएँ हिन्दी में लिखी हैंजिनमें से मेरे प्रीत तेरे गीतस्वाती बूंदनमो नमो भारतमाता प्रमुख रचनाएँ हैं|

आज विदेशों में हिन्दी अपना परचम लहरा रही है परन्तु भारत में हिन्दी भाषा को कोई सम्मान नहीं प्राप्त हैसिवाय इसके कि वह राष्ट्रभाषा हैभारत के सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थानों का कोई कार्य हिन्दी में नहीं होता हैयहाँ लोगों को हिन्दी बोलने में शर्म आती हैहिन्दी को अनपढ़ों और गवाँरों की भाषा समझा जाता हैभारत में अंग्रेजी अघोषित राजभाषा बन गई हैहिन्दी राजभाषा के साथ सबसे बड़ी विडम्बना यह कि स्नातक छात्रों तक को हिन्दी की वर्णमाला नहीं आती हैसिर्फ हिन्दी भाषा एक ऐसी भाषा है जो अन्य भाषाओं के शब्दों को बड़ी आसानी से अपने स्वरुप में समाहित कर लेती हैहिन्दी एक विस्तृत और विशाल भाषा है परन्तु इसमें कुछ संशोधन की आवश्यकता है पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम हिन्दी से दूर भागे या हिन्दी को अपनाने में शर्म करें|

सबसे बड़ी हास्यास्पद बात तो यह है कि सुबह से लोग एक दूसरे को “Happy Hindi Day” बोलकर हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ दे रहे हैंवही दूसरी ओर १५ अगस्त और २६ जनवरी को भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति, देश को राष्ट्रीय भाषा हिन्दी में सम्बोधित न करके अंग्रेजी में अपना भाषण सुनाते हैं और निर्लज्जतापूर्वक कहते हैं कि अंग्रेजी एक समृद्धिशाली भाषा हैकुछ शीर्षस्थ नेता तो यहाँ तक कहते हैं कि हिन्दी नौकरों की भाषा हैमैं यह नहीं कहती कि अंग्रेजी अशिष्ट भाषा है परन्तु देश के प्रतिनिधियों को राजभाषा के साथ ऐसा व्यवहार करना शोभा नहीं देता है|

भारत एक हिन्दीभाषी देश है परन्तु पूरे वर्ष हिन्दी भाषा की किसी को कोई चिंता नहीं होती लेकिन सितम्बर माह के प्रारंभ होते ही सरकारी और गैर सरकारी संस्थान हिन्दी पखवाड़ा मनाने में जुट जाते हैंजगह जगह पर सम्मेलन एवं संगोष्ठियाँ प्रारंभ हो जाती हैंहिन्दी भाषा के साथ यह होना चाहिएवह होना चाहिए या यह नहीं होना चाहिए... कुछ इस तरह के विषयों पर शिक्षाविद एवं कवि विचार करते नज़र आते हैं परन्तु हिन्दी पखवाड़ा बीतते ही सब लोग हिन्दी का चोला उतारकर खूंटी पर टांग देते हैं और अंग्रेजियत को गले से लगा कर धूमने लगते हैंहिन्दी भाषा की स्थिति बिल्कुल उस ब्याही बेटी की तरह हो गई हैजिसको महत्वपूर्ण अवसर पर ही मायके बुलाया जाता है और अपने देश में हिन्दी दिवस मनाना तो बिल्कुल करवाचौथ के त्यौहार के जैसा हैपूरे साल पति को “बैकफुट” रखने वाली भारतीय पतिव्रता नारियाँ अचानक करवाचौथ को अपने “बैकफुटिए पति” को परमेश्वर बनाकर पूजती हैं और अगला दिन होते ही परमेश्वर पति फिर से बेचारे पति में बदल जाता हैहम भी अपनी राजभाषा के साथ बिल्कुल ऐसा ही कर रहे हैं| साल के ३६४ दिनों में हमें हिन्दी की याद नहीं आती लेकिन हिन्दी दिवस को अचानक उसे सजा-सवाँरकर कवि सम्मेलनों और सभागारों में मुज़रा कराने के लिए बैठा देते हैं| हमें समझना चाहिए  राजभाषा आखिर राजभाषा है, हमारे सम्मान और अस्तित्व का प्रतीक हैंमैं मानती हूँ कि हम अपनी राजभाषा हिन्दी के लिए कुछ नहीं कर सकते पर कम से कम १४ नवम्बर को Happy Hindi Day मनाकर हिन्दी को अपमानित तो न करें|


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