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Saturday 22 September 2012

लव, सेक्स और धोखा




आज आधुनिक युग में प्रेम की परिभाषा बदल गई हैं| आज प्रेम का अर्थ शारीरिक सम्बन्धों से लगाया जाता हैं और बहुत हद तक यह सही भी हैं क्योंकि आज के अधिकांश लड़के और लड़कियों ने प्रेम की परिभाषा ही बदल कर रख दी है| उनके हिसाब से “प्रेम” जैसा कुछ होता ही नहीं और अगर प्रेम है तो वह सिर्फ पैसा हैं| अधिकतर लोगों का फलसफ़ा होता हैं प्रेम के नाम पर अपना काम निकालो और चलते बनो, चाहें सामने वाले की भावनाएं कितनी भी पवित्र और निर्मल क्यों न हो, वह लोग उनकी भावनाओं से खेलने में गुरेज नहीं करते हैं| उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाले पर क्या बीतेगा जब उसे उनकी असलियत का पता चलेगा| उन्हें इस बात का भी डर नहीं होता कि सामने वाले की नज़रों में वह गिर जाएगें|

आज नर हो या नारी सब आगे बढ़ना चाहते हैं इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाते है| कई बार तो तरक्की पाने की खातिर वह अपने नैतिक मूल्यों के साथ साथ अपने शरीर को भी दाँव पर लगा देते हैं| सुप्रीमकोर्ट की महिला वकील हो या गीतिका शर्मा और बहुत से उदाहरण हैं जिन्होंने सिर्फ तरक्की के लिए अपने शरीर का सौदा कर लिया| वही दूसरी ओर पूनम पाण्डेय, शर्लिन चोपड़ा और राखी सावंत जैसे भी लोग हैं जो सस्ती प्रसिद्धि के लिए बीच सड़क पर अपने कपड़े उतारे से परहेज नहीं करते हैं| बहुत से तो ऐसे नाम हैं जिन्हें यहाँ लेना उचित नहीं है| बहुत सी महिलाएं अपनी तृप्ति और वासना की संतुष्टि के लिए नित नए जिस्म की तलाश में रहती हैं|

फिर एक और प्रश्न उठता है कि क्या सिर्फ औरतें ही अपने ज़िस्म को नंगा करने पर तुली हैं, पुरुष नहीं ?

जॉन आब्रहीम, सलमान खां को कौन भूल सकता है? अक्षय कुमार ने एक स्टेज शो के दौरान अपनी पत्नी से अपनी जींस का बटन बंद करवाया था, यह कौन भूल सकता है? सस्ती लोकप्रियता के लिए इतने बड़े मंच पर अश्लीलता से परिपूर्ण यह कदम निंदनीय है| वासना तृप्ति के लिए पुरुष, औरतों की तुलना में ज़्यादा साथी बदलते हैं|

इतिहास उठाकर देखेगें तो पुरुषों ने ही औरतों को बाज़ार में बेचा हैं, उन्हें देवदासी, नगर वधुएँ और वैश्या बनाने में उनकी ही मुख्य भूमिका थी| आज यह कह देना कि पुराने जमाने में औरतें मज़बूरी में वैश्या बनती थी पूर्णतयाः गलत हैं| पुरुष ने अपनी वासना तृप्ति के लिए औरत को देवदासी और नगर वधुएँ बनने पर मजबूर किया और उन्हें ही समाज से बाहर निकाल दिया| अपने ज़िस्म की भूख मिटाने के लिए उसने औरत को वैश्या बनाकर सड़क पर खड़ा कर दिया और स्वयं पवित्रता का चोला ओढ़े घूम रहा है|

कोई भी औरत वैश्या नहीं बनाना चाहती है चाहें वह आदिकाल हो या आधुनिक काल, पर जब पुरुष चंद सिक्कों और अपनी वासना के लिए नपुसंकता की हद पार करने पर उतारू हो तो औरत क्या करे? वैश्या या देवदासी बनी औरतों और उनके बच्चों के लिए अपने समाज में जगह है ही कहाँ? मज़बूरन उन्हें उसी क्षेत्र में रहना पड़ता है|

प्रेम के नाम पर हमेशा ही शोषण होता हैं और यह एक कटु सत्य है कि प्रेम के नाम पर शोषण पुरुष ही करता है जिसका ख़ामियाज़ा हमेशा औरतों को ही भुगतना पड़ता है| हाल ही में चंद्रमोहन की पत्नी फ़िज़ा उर्फ अनुराधा बाली के प्यार ने कितना बवाल मचाया| यह प्रेम नहीं था यह वासना थी और एक औरत का शोषण था| जाने माने फ़िल्म अभिनेता शत्रुध्न सिन्हा के रीना रॉय से प्रेम सम्बन्ध थे परन्तु उन्होंने रीना से शादी न करके पूनम से शादी की क्योंकि रीना रॉय एक बार डांसर थी और पूनम प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखती थी| कौन इसको प्रेम का नाम देना चाहेगा? कम से कम मैं तो इसे प्रेम का नाम नहीं दे सकती| 

वह प्रेम ही क्या जो समाज के सामने स्वीकारा न जा सके| वह साथी क्या जो अपने प्रेम को कलंकित और अपमानित होने से न बचा सके| वह प्रेमिका क्या जो अपने प्रेमी पर अपना सब कुछ न्यौछावर न कर दे और वह प्रेमी, प्रेमी नहीं जो मौत से पहले अपनी प्रेमिका का साथ छोड़ दे|

शायद प्रेम में वासना का मिलन आज नहीं बल्कि आदिकाल से चला आ रहा हैं, बस आज के युवा-युवतियों ने इस वासनायुक्त प्रेम से पर्दा उठा दिया है| जो कृत्य समाज में रात के अंधेरों और पर्दे के पीछे हो रहा था, उन्होंने उसे सबके सामने उजागर कर दिया है|

पहले की तरह आज भी प्रेम है पर उनके लिए जो निभाना जानते हैं, जिन्हें सिर्फ ज़िस्म दिखता है उनके लिये नहीं| मैं यह नही कहती कि प्रेम में ज़िस्म की चाहत नहीं होती, पर सच्चे प्रेम में झूठ नही होता, शरीर के प्रति आसक्ति नहीं होती, वासना नहीं होती| 

हमें प्रेम से नहीं वासना से बचना चाहिए| स्त्री हो या पुरुष, सबको अपनी देह के सौदे पर मिलने वाली तरक्की से बचना चाहिए| आधुनिकता के नाम पर नंगे होने से बेहतर है कि हम पूरे कपड़े पहनकर रूढ़ीवादी बने रहे क्योंकि अपनी मेहनत और ईमानदारी से कमाई गई शोहरत और पैसा लंबे समय तक रहता हैं जबकि ज़िस्म की हदों पर कमाई गई इज्ज़त जवानी के चार दिन जैसी होती है|

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