like

Wednesday 16 April 2014

मुसलमान और सत्ता-सरकार

भारत की आज़ादी से लेकर वर्तमान समय तक भारतीय राजनीति में अग़र कुछ नहीं बदला है तो वह मुसलमानों को लेकर होने वाली उठा-पटक है| नेहरू के ज़माने से लेकर मनमोहन के समय तक, भारतीय राजनीति ने बहुत से अच्छे-बुरे दौर देखे हैं लेकिन चुनाव आते ही सारी राजनीति घूम-फिर कर मुसलमानों पर ही आकर अटकती है| 

१६वीं लोकसभा के पांचवें चरण के चुनाव होने वाले है लेकिन भारतीय राजनीति का मुख्य मुद्दा अभी भी मुसलमान बने हुए हैं| कुछ दिनों पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और इमाम बुखारी की मुलाक़ात ने मुस्लिमों को फिर से चुनावी हथकंडे की तरह इस्तेमाल करने की साज़िश नज़र आ रही थी, जिसकी रही-सही कसर बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ ने लखनऊ में मुस्लिम धर्मगुरुओं से मिलकर पूरी कर दी| समाजवादी पार्टी की तो रोज़ी-रोटी ही मुस्लिम राजनीति पर चलती है तो बहुजन समाजवादी पार्टी भी मुस्लिम राग अलापने में पीछे नहीं रहती| 

किसी भी राजनीतिक पार्टी को देखें, सभी मुस्लिमों को रिझाकर वोट पाने को आतुर दिख रहा है; और ऐसा हो भी क्यों न... मुसलमान आज भी किसी मौलाना-इम़ाम के कहने भर से किसी विशेष पार्टी को एक मुश्त वोट करता है, जो चुनावी नतीज़ों पर सीधा-सीधा असर डालता है... इसलिए हर किसी को सत्ता में आने के लिए मुस्लिमों वोट चाहिए| 

भारत में सिर्फ़ कहने के लिए मुसलमान अल्पसंख्यक  हैं जबकि जनसंख्या गणना के आंकड़ों को देखें तो हिन्दूओं के बाद वही दूसरा बड़ा समुदाय है लेकिन भारत में राजनीति के चलते मुस्लिमों को अभी भी अल्पसंख्यक का ही दर्जा मिला हुआ है जबकि वास्तव में इसाई, पारसी, सिख, बौद्ध आदि समुदाय ही अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं| 

इन अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मुसलमानों की तुलना में बहुत कम सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हैं या कहें कि बहुत से सरकारी सुविधाएं इन लोगों को मिलती तक नहीं है लेकिन मुसलमानों की तुलना में ये समुदाय बहुत तेजी से तरक्क़ी कर गये हैं और इनके जीवन स्तर में तेजी से सुधार हो रहा है जबकि सभी राजनीतिक पार्टियों और सरकार का समर्थन प्राप्त होते हुए भी मुस्लिम समाज आज भी वही खड़े हैं जहाँ वो आज़ादी के वक़्त खड़े थे| आज भी मुस्लिम समुदाय मूल आवश्यकताओं से दूर है... जबकि मुस्लिमों की तुलना में तो दलित समाज भी तरक्की के मामले में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है|

इसका मुख्य कारण यह है कि दलितों एवं अन्य समुदायों को भारतीय राजनीति में वोट बैंक के लिए सीधे तौर पर घसीटा नहीं गया है| जिसके चलते इन समुदायों ने अपनी तरक्क़ी का रास्ता खुद ही बनाया और खुद ही लगातर चलते जा रहे हैं...
सरकार द्वारा जितना लाभ इन्हें मिला है... इन लोगों से उन अवसरों को दोनों हाथों से लपका है और अपना विकास करने में लग गये हैं| सिख एवं दलितों को देखिए... आज वो अनेक उच्च पदों पर आसीन हैं| बड़ी-बड़ी कम्पनियों में काम कर रहें हैं| उनके जीवन स्तर का ग्राफ ऊपर बढ़ रहा है|

जबकि दूसरी तरफ़ राजनेताओं ने अपने स्वर्थ और वोट बैंक के चलते मुस्लिमों को अपना हथकंडा बना लिया है| नेता, मुसलमानों को आरक्षण का लॉलीपॉप का लालच देकर आगे बढ़ने ही नहीं दे रहे हैं और मुसलमान भी पकी-पकाई रोटी खाने के चक्कर में कुछ करना ही नहीं चाहते हैं| आज भी वो मदरसों में ही पढ़ रहे हैं... वो अभी भी पुरानी लकीर के फ़कीर बने हुए हैं| आज भी मुसलमान अपनी बुद्धि और विवेक की बज़ाय मौलाना-इमामों के फ़तवों में अपनी ज़िन्दगी तलाशते हैं... जबकि इनकें कुछ मुठ्ठी भर इमाम पैसा लेकर नेताओं के इशारों पर काम करते है और पूरे समुदाय को बदहाली में झोंक रहे हैं| 

मुसलमान तब तक तरक्क़ी करके सम्मानजनक जीवन नहीं जी सकता जब तक वह अपने विवेक से सही-ग़लत का फ़ैसला करना नहीं सीखेगा... स्वयं को वोट बैंक की गंदी राजनीति से दूर नहीं करता... लॉलीपॉप चाटने के बज़ाय अपने हाथों से जली ही सही, रोटी नहीं सेंकता और दलितों-सिखों की तरह ख़ुद मेहनत नहीं करता...
जिस दिन ये सारे गुण मुसलमानों में आ जाएगें वह नेताओं के हाथों की कठपुतली नहीं रह जाएगा और विकास के रास्ते पर चल निकलेगा|









1 comment: