आज बहुत शर्म महसूस हो रही है कि बीते कुछ वक़्त पहले मै अरविन्द
केजरीवाल में भारत का स्वर्णिम
भविष्य देख रही थी। मैंने अपने घर में होने वाली अधिकतर बहसों
में केजरीवाल को डिफेंड किया है क्योंकि मुझे भी अन्य लोगों की तरह केजरीवाल में
एक नया सिंदबाद दिखा था और मैंने एक लम्बा चौड़ा आर्टिकल भी लिखा था।
लेकिन अब केजरीवाल के रंग ढंग देखकर बहुत दुःख हो रहा की क्यों
मैंने इसे भारत का भविष्य समझा... यह भी अन्य नेताओं की तरह गिरगिट खाल का निकला।
शायद यह स्वस्थ और स्वच्छ राजनीति करता तो मेरा और मेरे जैसे
अन्य लोगों का समर्थन इसे हमेशा प्राप्त होता लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री बनते ही
लोकसभा के लालच में केजरीवाल ने अपने युवा समर्थन पर स्वयं ही झाडू मार ली और
बचा-खुचा समर्थन मात्र मोदी को हराने के लिए कांग्रेस एवं सजा-ए-आफ़्ता मुजरिम
मुख़्तार अंसारी से हाथ मिलाकर खत्म कर लिया।
बेशक़ केजरीवाल शीला दीक्षित की तरह मोदी को भी हारने की राजनीति
करते लेकिन जो मूल्य और नैतिक आधार वो लेकर चले थे, उन्हें उसके साथ समझौते नहीं करने चाहिए थे क्योंकि इस राजनीतिक
हरम में सब पार्टी और उनके नेता नंगे है चाहें जो वो बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर
सपा-बसपा या कोई बाहुबली गुंडा नेता। ऐसे में केजरीवाल को किसी से भी हाथ नहीं
मिलना चाहिए था और न इसके बारे में सोचना चाहिए था। लेकिन सत्ता का स्वाद
ही ऐसा होता है कि अच्छे से अच्छा इंसान भी लालच में फंस जाता है और यही हाल
केजरीवाल का हुआ... दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उनमें अहंकार और लोकसभा का
लालच कुछ इस तरह से भर गया कि वो अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार बैठे हैं|
हो सकता है १६वीं लोकसभा का चुनाव केजरीवाल जीत जाये (जिसकी
सम्भवना लगभग नगण्य है)... लेकिन केजरीवाल ने अधिकांश जनता का विश्वास खो दिया है
और अब वह विश्वास हासिल करना अब बहुत ही मुश्किल होगा क्योंकि दिल्ली विधानसभा
चुनाव में केजरीवाल में लोगों ने केजरीवाल को खेवनहार के रूप में देखा था, जो उन्हें नरक जैसी
जिन्दगी से निज़ात दिलाने वाला था| दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को मुख्यत: गरीब, पिछड़ी जनता का वोट
मिला था, जो हालत से समझौता
करके बदतर ज़िन्दगी जीने को मज़बूर हो चुके थे या समझो किये गए थे| केजरीवाल ने ही उन्हें
नर्क से निकले के सपने दिखाए और स्वयं ही उनकी उम्मीदों के दिए बुझाए! जिसकी
परिणिति थप्पड़ों के रूप में बाहर आ रही है|
मै केजरीवाल और उनके प्रत्याशियों को पड़ने वाले एक भी थप्पड़ के
पक्ष में नहीं हूँ... क्योंकि सिर्फ़ एक केजरीवाल नहीं है जिसने जनता को ठगा हो, यहाँ तो हर नेता जनता
को मूर्ख बना रहा है और जनता चुपचाप मूर्ख बन रही है| आजतक किसी भी आम आदमी
की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि वो उठे और नेता से कोई सवाल करे या उसकी ग़लती पर थप्पड़
जड़ दे| ऐसे में केजरीवाल को
मारना आश्चर्यजनक एवं निंदनीय है| जनता केजरीवाल को थप्पड़ लगा सकती है क्योंकि अन्य नेताओं की तरह
उसने ज़ेड प्लस सुरक्षा नहीं ली है|
अगर जनता वाकई में जागरूक हुई है तो अन्य नेताओं से भी ज़वाब
मांगने चाहिए और असंतुष्ट होने पर उन्हें भी कान के नीचे लगाने चाहिए|
केजरीवाल को एक बार आत्म-मंथन की आवश्यकता है, जिससे उन्हें यह
मालूम हो सके कि वो जनता के लिए राजनीति में आये थे या सत्ता के लिए| क्योंकि जब तक उनका
लक्ष्य स्पष्ट नहीं होगा वो न तो अपने लिए कुछ कर पायेगें और न जनता और सत्ता के
लिए| लेकिन मेरी अभी कोई
भी शुभकामनाएं उनके साथ नहीं है जब तक वो अपना दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं करते|
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