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Friday 18 April 2014

सत्ता में "सेलीब्रिटीज़"

१६वीं लोकसभा में लगभग सौ से ज़्यादा "सेलिब्रिटी" लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं| वैसे तो हर चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियाँ मोटी रक़म ख़र्च करके "स्टार प्रचारकों" को अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए मैदान में उतारती है लेकिन कभी कभी राजनीतिक पार्टियाँ अपने इन "स्टार प्रचारकों" के चेहरों और लोकप्रियता को वोट में बदलने के लिए इन स्टार प्रचारकों को टिकट बाँट देती हैं| इस बार भी हर पार्टी ने "सेलीब्रिटीज़" के चेहरों को भुनाने का पूरा मन बना लिया है|  अगर विश्लेष्ण किया जाय तो कई बार ये "स्टार प्रत्याशी" बाज़ी मार ले जाते हैं|

जहां बीजेपी से हेमा मालिनी, स्मृति ईरानी, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, किरन खेर आदि मैदान में है तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस ने नगमा, मोहम्मद कैफ़, नंदन नीलेकणी, रवि किशन आदि "सेलिब्रिटीज़" को लोकसभा का टिकट थमा दिया है| अगर बात की जाए तो अभी अभी पैदा हुई आम आदमी पार्टी की तो वह भी "सेलीब्रिटीज़" का मोह छोड़ने में नाकाम रही और गुल पनाग, ज़ावेद ज़ाफरी को टिकट दे कर उनकी लोकप्रियता भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती| वही बीजेपी से टिकट न मिलने पर राखी सावंत ने एक नई पार्टी ही बना डाली| 

अक्सर राजनीतिक पार्टियाँ अपने "स्टार प्रचारकों" को ऐसे क्षेत्र से खड़ा करती हैं... जहाँ से उनका कोई सम्बन्ध नहीं होता| उन क्षेत्रों की इतिहास-भूगोल का उन्हें कोई ज्ञान नहीं होता और न उन्हें वहां की मूल ज़रूरतें और समस्याएं मालूम होती हैं,  फिर भी अधिकतर "स्टार प्रत्याशी" इन क्षेत्रों से जीत जाते है लेकिन जीत का सेहरा बँधते ही प्रत्याशी अपने निर्वाचित क्षेत्र को भूलकर दोबारा अपने गृहनगर जाकर अपने पुराने धंधे-पानी  में लग जाते हैं और अपने निर्वाचित क्षेत्रों में भूले से भी नहीं जाते हैं|  कई बार तो क्षेत्रीय प्रत्याशी ही चुनाव जीतकर अपने निर्वाचित क्षेत्र को भूल जाता है| 

लेकिन जनता भी इन "स्टार प्रत्याशियों एवं प्रचारकों" का मोह त्याग नहीं कर पाती हैं और ऐसे ही किसी प्रत्याशी को चुनती है जो लोकप्रिय होता है या फिल्मों-क्रिकेट से जुड़ा होता है| जनता को लगता है... ऐसा "बड़ा आदमी" हमारे काम आएगा, हम बार बार उससे मिलने जाएगें, उसे छू-छूकर बात करेगें| लेकिन ऐसा होता नहीं हैं... ताज़ातरीन उदाहरण अमृतसर से बीजेपी सांसद  नवजोत सिंह सिद्धू का है, जो पिछला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से अमृतसर झांकने तक नहीं गये और वहाँ के स्थानीय लोगों ने सिद्धू के गुमशुदा होने के पोस्टर छपवा कर शहर में चिपका दिए थे| ऐसा ही कुछ हाल कानपुर के स्थानीय कांग्रेसी सांसद श्री प्रकाश जायसवाल का है; वह भी बड़े बड़े वादों के साथ कानपुर से जीतकर पिछली बार दिल्ली गये थे और फिर दिल्ली के होकर रह गये| अब फिर से चुनाव आये है तो जायसवाल साहब फिर कानपुर में नज़र आये हैं| 
ऐसा ही कुछ हाल राष्ट्रपति द्वारा निर्वाचित क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर एवं अभिनेत्री रेखा का था| दोनों पूरे सत्र संसद से नदारत रहे और उनकों मिलने वाली सांसद निधि का पैसा (जो संसदीय क्षेत्र के विकास के लिए मिलता है) भी "लैप्स" कर गया| 

अगर देखा जाय तो ऐसे लोगों को चुनकर जनता ठगा महसूस करती है| उसका वोट का मूल्यहीन हो जाता है| क्षेत्र बुनियादी ज़रूरतों से वंचित रह जाता है और विकास में पिछड़ जाता है| इन परिस्थितियों से बचना है तो जनता और चुनाव आयोग दोनों को सजग होना चाहिए; जनता को ऐसे "स्टार प्रत्याशियों" से दूर रहना और स्थानीय प्रत्याशियों का चुनाव करना चाहिए... 

जो प्रत्याशी चुनाव जीतने के बाद अपने निर्वाचित क्षेत्र में दुबारा न आये और न उसका विकास करे... उस प्रत्याशी को किसी भी कीमत में अपना वोट नहीं देना चाहिए, चाहें वो कितना बड़ा "सेलीब्रिटी" क्यों न हो| दूसरी तरफ़ चुनाव आयोग को भी समय-समय पर सांसदों को उनके क्षेत्र के विकास के बारे में तलब किया जाना चाहिए| यदि कोई सांसद, "सांसद निधि" का पैसा नहीं ले रहा है तो क्यों नहीं ले रहा है? इस बाबत भी सांसदों को जवाबदेह बनाना होगा| यह सारी बातें अभी शायद दूर की कौड़ी लगे... लेकिन अगर जनता अपने वोट की कीमत समझने लगे तो कुछ भी नामुमकिन नहीं होगा|

वोट के चक्कर में पार्टियाँ स्थानीय कार्यकर्ताओं की मेहनत को नाकार कर उन पर रंगे-पुते चेहरे थोप देते हैं जिससे न तो कार्यकर्ता ठीक से काम करता है और न "सेलीब्रिटीज़" ज़मीन पर उतरती हैं; जिसका ख़ामियाज़ा वोट देने के बाद भी जनता ही भुगतती है| 
राजनीतिक पार्टियाँ, वोट और सरकार के लालच में "सेलीब्रिटीज़" को लाते रहेगें लेकिन हमें वही चुनना है जो हमारे लिए सही है... किसी "सेलीब्रिटी" के मोह में फंसकर हमें विकास के दौड़ में पीछे नहीं होना चाहिए| इसलिए...

उठो, जागो और सही को वोट दो...

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